मत घबड़ा रे मना......
जग है दो दिन का बसेरा।
जीत कभी तो हार कभी
लहराए कभी खुशयों का समन्दर
हो जाय घनेरी रात कभी
मत घबड़ा रे मना।।
फ़ूलों की सौगात कभी
कभी मीले राह में कांटे
ये जिन्दगी की राह है प्यारे
दिखे नही समतल राह यहां।।
मत घबड़ा रे मना.....
उड़ जायेगा एक दिन पक्षी
जल जायेगी ये नश्वर काया
रह जायेगी तकर्मों की गाथा
जीवन बीत गया यूँ हीं. मिथ्या....।।
मत घबड़ा रे मना.....
ये जग है दो दिन का बसेरा।
कौन है अपना कौन पराया
समझ न पाया कोई यहां....
जख्मों की आबादी है...
लफ्जों में है घाव यहां....।।
मत घबड़ा रे मना......
ये जग है दो दिन का बसेरा....।।
उर्मिला सिंह
सुन्दर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया आलोक सिन्हा जी।
ReplyDeleteउड़ जायेगा एक दिन पक्षी
ReplyDeleteजल जायेगी ये नश्वर काया
रह जायेगी तकर्मों की गाथा
जीवन बीत गया यूँ हीं. मिथ्या....।।
वाह!!!
दार्शनिक भाव लिए बहुत ही लाजवाब सृजन
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी।
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ReplyDeleteकौन है अपना कौन पराया
समझ न पाया कोई यहां....
जख्मों की आबादी है...
लफ्जों में है घाव यहां....।।
मत घबड़ा रे मना......
ये जग है दो दिन का बसेरा....।।
सत्य से रूबरू कराती सुंदर चिंतनपूर्ण रचना ।
जिज्ञासा जी आभार एवम शुक्रिया।
Deleteसार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteशुक्रिया कैलाश मण्डलोई जी।
Deleteआध्यात्मिक भावों का गहन सृजन ।
ReplyDeleteसुंदर उपदेशात्मक सा सृजन दी ।
हार्दिक धन्यवाद प्रिय कुसुम।
Deleteप्रिय कुसुम सनहिल धन्यवाद।
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