मन के भाव...पन्ने लेखनी के
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बिगड़ रही रीति जगत की
खोया सम्मान ढूढ रही नारी
अन्तर्मन है प्रभु की नगरी
हाथों में उसके सबकी डोरी।।
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राजनीति अब चौसर बनी
नेता सारे बने खिलाड़ी
चुनाव युद्ध का बिगुल बजा
छल प्रपंच घोड़ाऔरसिपाही
शकुनी दुर्योधन,बने खिलाड़ी
ऊपर बैठे मुस्काते गिरधारी।।
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उसूल याद नही जिनको
कहते हैं अपने को गांधी
कैसे नेता माने देश उनको
बातें करते जो पाकिस्तानी।।
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हत्याओं के दौर चल पड़ा
हर दल, दल दल में पड़ा
मानवता का होरहा शोषण
होगा कैसे गरीबों का पोषण।
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हर सांस देश के लिए जिए
समर्पित सांसे अपनी करगए
चाहत नही नाम अरु कुर्सी की
राष्ट्रभक्त थे वो अमर होगए।।
उर्मिला सिंह
सुंदर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका सुशील कुमार जोसी जी।
Deleteबहुत सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteअन्तर्मन से धन्यवाद मीना जी।
Deleteसटीक सुंदर यथार्थपूर्ण रचना ।
ReplyDeleteजिज्ञासा जी धन्यवाद आपका।
Deleteराजनीति अब चौसर बनी
ReplyDeleteनेता सारे बने खिलाड़ी
चुनाव युद्ध का बिगुल बजा
छल प्रपंच घोड़ाऔरसिपाही
शकुनी दुर्योधन,बने खिलाड़ी
ऊपर बैठे मुस्काते गिरधारी।।
बहुत ही उम्दा
शुक्रिया मनीषा जी।
Deleteयथार्थवादी लेखन
ReplyDeleteधन्यवाद अनिता जी।
Deleteउत्तम सृजन आ0
ReplyDeleteधन्यवाद अनिता सुधीर जी।
Deleteसमयानुकूल सुंदर रचना!--ब्रजेंद्रनाथ
ReplyDeleteआभार आपका मान्यवर।
Deleteहार्दिक आभार कामनी जी हमारी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए।
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