उलझे सुलझे रिश्तों की डोर
टेढ़ी मेढ़ी जीवन राहों की मोड़।
सोच रहा विचारा व्याकुल मन
कैसे सुलझाऊं,उलझी गांठों की डोर
पाऊं कैसे दुस्तर मंजिल की छोर।।
उर्मिला सिंह
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