Tuesday, 28 June 2022

एक ख्वाईश....पागल मन की

एक ख्वाईश....पागल मन की।

बारिष -बादल
सावन -झूले
सुहानी हवा
माटी की सुगंध
फूलों की खुशबू
पूरी कायनात महक उठे।।

एक ख्वाइश -पागल मन की।।

इंद्रधनुषी -अम्बर
विश्वाशों का सफर
अनन्त की प्रार्थना
 बारिश की बूंदे
 अन्तर्मन के भाव
 विभोर तन मन
 नयन कोरों से
 छलकते अश्क
 एक ख्वाइश -पागल मन की।।
 
      कुछ शब्द 
 यादों के पिंजरे से
      तस्वीर बन 
     सामने आते
बीते वक्त  के अहसास
 सुरीले गीत के स्वर
  गूंजते वादियों में।।

एक ख्वाईश - पागल मन की।।
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          उर्मिला सिंह
  
 
    
     


Monday, 13 June 2022

सत्य अजेय है.... एकता ताकत

सत्य को सब्र चाहिए जिन्दगी में भला कबतक
पत्थर बाजी बिगड़ते बोल भला सहे कब तक
कौन झुका कौन जीता कौन हारा मतलब नही थप्पड़ खाकर गाल आगे करते रहोंगे कबतक।।

जिसकी मन वाणी तीर की तरह चले हमेशा 
शिवाजी की तलवार राणा प्रताप का भाला  ,
बताओ हिन्द वालो  रुके भला कैसे.......
सच्चाई बिन डरे भीड़ से  कह दिया जो हमने
कोई बताए ज़रा कौन सा जुर्म कर दिया हमने।।

शराफ़त का चोला पहन बैठे रहोगे कबतक
होश में आये नही अगर आज भी तुम्ही कहो
आजाद भगत सिंह असफाक के बलिदान का
क्या जबाब दोगे आने वाली पीढ़ियों को कहो
पत्थरों से संवेदना भीख,मांगते रहोगे कब तक।।
   कब तक...कबतक....कबतक
   
               उर्मिला सिंह