Sunday, 8 December 2024

मुक्तक

दर्दोगम को  दिल  में छुपाये रखती है

कई ख्वाब आँखों में सजाये रखती है

जिन्दगी को तपिश की लपटों से बचाती हुई

नारी पहेली बनी कर्तव्य पर उत्सर्ग रहती है !!

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                       #उर्मिल

                 

सुलझाने से भी न  सुलझे  वो  ज़िन्दगी है

समझ समझ के भी न समझे ऐसी पहेली है

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                   # उर्मिल


10 comments:

  1. हार्दिक आभार मान्यवर

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १० दिसम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. आभार श्वेता जी हमारी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए।

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  3. अबूझ पहेली नारी ? : )

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  4. वाह, नारी और ज़िंदगी दोनों पहेली ! वैसे तो यह सृष्टि ही एक रहस्य है

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  5. बहुत ही खूबसूरत रचना

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