गुरु की महत्ता....
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गुरु शब्द बहुत महत्वपूर्ण होता है 'गु ' का अर्थ होता है- अंधकार... चाहे अज्ञान का हो चाहे अभिमान का हो !और 'रु' का अर्थ होता है - दूर करने वाला...!
जिसे हम इस प्रकार समझ सकतें हैं----
गु+रु=गुरु ...यानी अंधकार को दूर करने वाला।
प्राचीन काल से गुरु का महत्व रहा है श्री राम ने ऋषि वशिष्ठ एवम विश्वामित्र को गुरु बनाया था । हनुमान जी ने सूर्य देव को गुरु बनाया था तथा श्री कृष्ण जी ने सांदीपनि को गुरु बनाया था।
कहने का तातपर्य वैदिक काल से गुरु शिष्य की परम्परा चली आरही है।आज भी इन्सान गुरु की खोज में दरबदर भटकता है...!
कहा गया है----
बिन गुरु ज्ञान कहाँ से पाऊँ
दीजो ज्ञान हरि गुन गाउँ।।
गुरु जीवन में कई रूप में मिलतें हैं । बच्चा जन्म लेते ही माँ के रूप में,जीविका प्राप्त करने के लिये शिक्षक के पास विद्यार्थी रूप में कुछ पाने के लिये जाता है ...। परन्तु शिष्य स्वयम को प्रभु चरणों में समर्पित करने की कला सीखने सद्गुरु के पास जाता है।
सद्गुरु मन को संसार से विलग नही वरन शिष्य को संसार में रहकर हर कार्य प्रभु चरण में समर्पित करने का उसे सन्देश देता है , समाज सेवा का कार्य करने की प्रेरणा और ज्ञान देता है। सद्गुरु सूरज की तरह होता है, जिसके सदवचनो से अन्तस् का दिया जल जाता है...।
उसका एक- एक शब्द ह्रदय रूपी वीणा पर पड़ते ही उर का तार सद्भावों से झंकृत हो उठता है , तमस दूर हो जाता है ...।
ऐसा, गुरु,सद्गुरु के वचनों का प्रभाव होता हैं।
गुरु की महत्ता का कबीर जी ने इस प्रकार दर्शाया है:-
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाय ।
बलिहारी गुरु आपकीे, गोविंद दियो बताय।।
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सीधे देख न पाई प्रभु को, गुरु मेरा दर्पण बन गया।
बलिहारी सद्गुरु को असम्भव को सम्भव कर दिया।।
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🌷उर्मिला सिंह
वाह
ReplyDeleteयथार्थ
बहुत ही सुंदर लेख गुरुपूर्णिमा पर
धन्यवाद रवींद्र भरद्वाज जी
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