अब पत्थरों सी जलने लगी है जिन्दगी
नेकियों का सिक्का लुप्त होरहा ....
अब रिस्ते जल्दी चटकतें हैं....
अब भरोसे जल्दी टूटतें हैं....
सच झूठ में जल्दी बदलते हैं....
जानतें है क्यों.........?
क्यों कि......
स्थायित्व का अब कोई मूल्य नही रहा.....!!
🌷 उर्मिला सिंह
निसंदेह सत्य
ReplyDeleteधन्यवाद ऋतु जी
Deleteदी बहुत ही सटीक कहा आपने ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद प्रिय कुसुम
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