सजदे में सिर झुका..... मन में ज्वार उठा.......
हम सजदों में हसरतों के ख़ातिर गिरते रहे
तूँ नित्य नये रूपों में मुझे रोमांचित करते रहे
बन्द पलकों में मेरे, नये नये रुप दिखाते रहे
आज ये कैसी चेतना मनमें जागृति हुई
हसरतों के पँख मैंने स्वयम ही कतर डाले
आँखों के सभी आवरण हटने लगे
जीवन आनन्द से ओतप्रोत हो उठा
सजदे में सिर मेरा तेरे चरणों में झुक गया!!
🌷उर्मिला सिंह
बेहद खूबसूरत पंक्तियां 👌👌🌹
ReplyDeleteहार्दिक धन्यावाद प्रिय अनुराधा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन दी जी
ReplyDeleteसादर
स्नेहिल आभार प्रिय अनिता जी
Deleteहार्दिक धन्यावाद श्वेता जी आपको!
ReplyDeleteबहुत खूब.... सादर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद कामनी जी!
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर...
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी
Deleteवाह दी बहुत बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteस्नेहिल धन्यवाद प्रिय कुसुम
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