रात भी हो गई है दुश्मन क्या करें!
नींद आती नही ,पल एक क्या करे!!
सुधियाँ बैठी रही किये अनशन रात भर
फिज़ाएं खामोश,पुष्प भी मुरझाने लगे
सही जाती नही, जिन्दगी की ये घुटन
प्रीत भी होती रही ,घायल रात भर !!
नीद आती नही ,पल एक भी क्या करें!!ओ0पी
चाँदनी सांकल खटखटाती रही बैचैन हो
तारिकाएँ भी बन गई बैरी, बता क्या करें!
अश्क से भरे नयन,याद आते रहे रातभर,
साँसों की रेजगारी ,शोर करती रही क्या करें
नींद आती नही पल एक भी क्या करे!!
बाँसुरी का स्वर, अनवरत गूंजता रहा,
पुरवाई लटों को छू ,दिलासा देती रही,
सागर की लहरें तरसती रहीं किनारों के लिए
स्वरों से हो गई ,अनबन क्या करें !!
नीद आती नही, पल एक क्या करें!
तुम न आये दीप जलता रहा रात भर,
प्रतीक्षित नयन राह देखते रहे रात भर!
आशाऐं खंडहर होने लगी पल पल,
प्रीत की डगर,अंधेरा ही अंधेरा हो गया!
चाँदनी सँग मेरे सिसकती रही रात भर!!
नींद आती नही पल एक क्या करें!
रात भी होगई है दुश्मन क्या करें !!
-------0------
🌷 उर्मिला सिंह
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 4 मार्च 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
शुभ प्रभात पम्मी जी 🙏मेरी रचना को साझा करने के लिए आभार आपका
ReplyDelete