चलो साथ-साथ चलतें हैं हम...
जिन्दगी दुबारा मिलें न मिले
कुछ जख़्मों को तुम भूल जाओ
कुछ जख़्मों को हम भूल जाएं ।
चलो साथ-साथ चलतें हैं हम...!
तुम हो तो हम हैं हम हैं तो तुम...
बँधी जिन्दगी तुमसे फिर क्यों हो चुप
फिर ये मौसम और हम,संग -संग हो न हो
उन लम्हो में अकेले रह जाएंगे हम।
चलो साथ-साथ चलते हैं हम...!
यादों का कारवाँ पूछेगा जब तुमसे
कहाँ छोड़ आये हम सफ़र को अपने
कैसे उससे आँखे मिलाएंगे हम
उन हसीन लम्हों को क्या भूल पाएंगे हम।
चलो साथ साथ चलते हैं हम....!
चाँदनी रात, हाथों में हाँथ
रश्क़ करता जिसे देख कर चाँद
गिरह यादों की खुल जाएगी जब
बार- बार ख़ुद को कोसेंगे हम।
चलो साथ साथ चलतें हैं हम...!
अहम के भँवर में फसे जिस्म दो
किनारे छूने को तरसते हैं वो....
तोड़ कर अहम की जंजीरें.....
सप्त भाँवरों की कसमें निभातें हैं हम।
चलो साथ-साथ चलतें हैं हम...!!
उर्मिला सिंह
चाँदनी रात, हाथों में हाँथ
ReplyDeleteरश्क़ करता जिसे देख कर चाँद
गिरह यादों की खुल जाएगी जब
बार- बार ख़ुद को कोसेंगे हम।
चलो साथ साथ चलतें हैं हम...!
...बहुत ही सुंदर प्रेरक रचना आदरणीया उर्मिला जी।
बहुत बहुत धन्यवादपुरुषोत्तम जी।
ReplyDeleteसाथ-साथ चलने की अभिलाषा सुंदर भी है और वांछित भी । सुंदर अभिव्यक्ति उर्मिला जी ।
ReplyDeleteजितेंद्र माथुर जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteबेहतरीन और सार्थक भावों की प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद उत्साह वर्धन के लिए।
Deleteबेहतरीन रचना आदरणीया दी
ReplyDeleteस्नेहिल धन्यवाद प्रिय अनुराधा जी।
Delete
ReplyDeleteअहम के भँवर में फसे जिस्म दो
किनारे छूने को तरसते हैं वो....
तोड़ कर अहम की जंजीरें.....
सप्त भाँवरों की कसमें निभातें हैं हम।..सुंदर भावों का सृजन..खासतौर से ये पंक्तियां पूरी कविता का सार हैं..समय मिले तो मेरे ब्लॉग "जिज्ञासा की जिज्ञासा" पर अवश्य भ्रमण करें..
आभार आपका ,मैं आपके ब्लॉग पर अवश्य आउंगी।
Deleteआपकी रचना हमने पढ़ भी है आप तो बहुत अच्छा लिखती हैं। पुनः धन्यवाद
बहुत बहुत सराहनीय
ReplyDeleteसराहना के लिए अन्तर्मन से धन्यवाद आपका।
Deleteचाँदनी रात, हाथों में हाँथ
ReplyDeleteरश्क़ करता जिसे देख कर चाँद
गिरह यादों की खुल जाएगी जब
बार- बार ख़ुद को कोसेंगे हम।..बहुत सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन।
अहम के भँवर में फसे जिस्म दो
ReplyDeleteकिनारे छूने को तरसते हैं वो....
तोड़ कर अहम की जंजीरें.....
सप्त भाँवरों की कसमें निभातें हैं हम।
इतना प्यारा गीत जो अनुराग और समर्पण से भरा है |पढ़कर बहुत अच्छा लगा उर्मि दीदी | ये कामनाएं पूर्ण हों अक्षुण रहें यही कामना है | सादर