प्राण पखेरू जब उड़ गए ....
अश्रु पूरित नैन, सब देखते रह गए।
ढह गई अभिमान की अट्टालिकाएँ
द्वेष ,ईर्ष्ययाग्नि से, मुक्त आत्माएं
ये जगत किसका रहा है ,सोचो जरा.....
पंचतत्व की काया पंचतत्व में मिल गए।।
अश्रु पूरित नैन, सब देखते रह गए...।
मृग तृष्णा सदा छलती रही उम्र को
भटकती काया बांहों में आसमाँ भरने को
अनमोल जिन्दगी निरर्थक ही रही जगत में
अंत समय कर्मों की भरपाई करते रहगये।।
अश्रू पूरित नैन,सब देखते रह गए....।
एक मुट्ठी राख आखिरी दौलत रह गई
वो निशानी भी अंततः प्रवाहित होगई
दया करुणा इंसानियत होतीअचल संपत्ति
जन्म मृत्यु अटल सत्य,चिरनिद्रा में विलीन होगये।।
अश्रु पुरित नैंन ,सब देखते रह गये।
उर्मिला सिंह
एक मुट्ठी राख आखिरी दौलत रह गई
ReplyDeleteवो निशानी भी अंततः प्रवाहित होगई
दया करुणा इंसानियत होतीअचल संपत्ति
जन्म मृत्यु अटल सत्य,चिरनिद्रा में विलीन होगये।।
बहुत ही लाजवाब शब्द चित्र उर्मि दीदी | अश्रुधारा में दुबे नयन किसी अपने के अवसान पर यूँ ही वेदना और करुणा में आकंठ डूब वैराग्य से भर जाते हैं | सच है एक मुट्ठी राख ही इस कंचन काया का अंतिम सच ही | निशब्द हूँ और भावुक भी ये रचना पढ़कर | ना जाने क्यों आपने इतनी पीड़ा उड़ेल दी इस रचना में | सादर
प्रिय बहन रेणू रचना की प्रसंशा करने के लिए बहुत बहुत बहुत आभार हमारी सोसाइटी में एक घटना
Deleteहोगई थी ..…..बस कुछ भाव आये उसे आप सभी के समक्ष रख दिया।
मनुष्य जीवन का सत्य , आखिरी निशानी भी बह जायेगी
ReplyDeleteकिन्तु मनुष्य के श्रेष्ठ कर्मों की छांप फिर भी यह जाती है
भावपूर्ण रचना उर्मिला जी ।
हार्दिक धन्यवाद आपका ।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteरचना की प्रसंशा करने के लिए धन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर और सटीक रचना।
ReplyDeleteडॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी हार्दिक धन्यवाद प्रोत्साहन के लिए।आपका।
Deleteयही शाश्वत सत्य है । जानते सब हैं लेकिन मानता कोई नहीं ।अंत में एक मुट्ठी रख ही बन जाना है ।
ReplyDeleteचिंतनशील रचना ।
संगीता स्वरूप जी अन्तर्मन से धन्यवाद।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ मार्च २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
प्रिय श्वेता जी इस रचना को मंच पर रखने के लिए आपकी आभारी हूँ।
Deleteमृत्यु तो अटल सत्य है जिसे कभी बिसराना नहीं चाहिए । हार्दिक अभिनंदन आपका उर्मिला जी इस सार्थक अभिव्यक्ति के लिए ।
ReplyDeleteरचना की सराहना के लिए आपकी ह्दय से आभारी हूँ जितेंद्र माथुर जी।
Deleteएक मुट्ठी राख आखिरी दौलत रह गई
ReplyDeleteवो निशानी भी अंततः प्रवाहित होगई
सही कहा यही है जीवन का अटल सत्य...
बस हमारे कर्मों का लेखा जोखा याद रहता है वह भी कुछ समय ....।
नश्वर संसार में नश्वर जीवन।
लाजवाब भावाभिव्यक्ति।
रचना की प्रसंसा के लिए सुधाजी तहेदिल से शुक्रिया।
Deleteबहुत मार्मिक रचना...
ReplyDeleteयही परम् सत्य है...
शेष रह जाते हैं केवळ अश्रुपूरित नैन ही...
अपने किये गए कर्मों का लेखा जोखा ही इहलोक और परलोक में संबंध स्थापित करते हैं...
काया तो जला दी जाती है...
धन्यवाद दीन्ह साहब।
Deleteजीवन के वास्तविक सच से परिचित कराती
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना
बहुत सुंदर
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
आभार
बहुत बहुत शक्रिय ज्योतिखारे जी। अवश्य
Deleteआपकी सुंदर रचना मुझे भावों से भर गई,जीवन का से और सार ।बढ़िया सृजन ।
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए आपकी आभारी हूँ जिज्ञासा जी।
Delete*से/सत्य
ReplyDeleteअत्यंत मनोरम रचना...
ReplyDeleteधन्यवाद हरीश कुमार जी।
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