सही फैसले पर अटल रहना कामयाबी की निशानी होती है।
फैसला करके भूल जाने वालों से मंजिल दूर होती है।।
सूरज अंधेरा दूर करता है,पर अंधियारी रात भी होती है।
अज्ञानता के अंधकूप को ज्ञान की रोशनी दूर करती है।।
महलो में बैठ कर झोपड़ियों की बातें अच्छी लगती है
दर्दे-गरीबी को क्या जानो जो रातों में मजबूर सिसकती है।।
भूखे नङ्गे बच्चों के तस्वीरों की कीमत आंकी जाती है
फुटपाथ भूख से मरते बच्चों की बस्ती होती है।।
जिस आबो हवा में रहते हैं क्या बतलायें क्या क्या सहतें हैं।
रोटी महंगी,आंसूं की कीमत सस्ती होती है।।
स्वार्थ,नफ़रत की हवा किसी वायरस से कम कहाँ होती।
एक अमनो चैन छीनती दूसरी जिन्दगी मग़रूर
करती है।।
उर्मिला सिंह
रचना अच्छी है । भाओं शब्द से उलझ रही । कृपया स्पष्ट करें।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद प्रतिक्रिया के लिए संगीता स्वरूप जी।
ReplyDeleteआशा है भविष्य में भी सहयोग मिलता रहेगा। मन,भाव में जब द्वंद होता है तब शब्द और भाव उलझ जातें हैं।
शायद ऐसा ही कुछ इस रचना के साथ हुआ है।ठीक करने का प्रयास करूँगी।पुनः बहु बहुत धन्यवाद।
आपने द्वारा अभिव्यक्त भाव सच्चे हैं । अभिनंदन उर्मिला जी ।
ReplyDeleteआभार जितेंद्र माथुर जी।
ReplyDeleteभावात्मक प्रस्तुति
ReplyDeleteशुक्रिया आपका।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आलोक सिंह जी।
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteमनोभावों की गहन अभिव्यक्ति।
अन्तर्मन से धन्यवाद मान्यवर,बहुत बहुत आभार।
ReplyDeleteबहुत ही भावों भरी होती हैं,आपकी रचनाएं । आपकी गूढ़ अभिव्यक्ति को हार्दिक नमन है ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी।
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