तेरी यादों को भुलाऊं कैसे
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भीगी उम्मीदों को सुखाऊँ कैसे तेरी यादों को
भुलाऊँ कैसे !
बैठे रहते थे घण्टो जिन चिनारों तले
उन लम्हों को दिल से अलग बसाऊ कैसे!
ठंढी हवाओं के झोके से बिखरती लटें
लिपटी है तेरी यादोँ के संग ,सुलझाऊँ कैसे!
तेरे हाथो की खशबू बसती है हाथो में मेरे
उन अहसासों को दूर तुझसे ले जाऊँ कैसे!
घुमा करते थें जिन वादियों में कभी -
उन बेसबब यादों को पलकों में छुपाऊँ कैसे!
ढूढ़ती है नम निगाहें आज भी तुझे
पन्नों पे उभरते अक्सो को मिटाऊं कैसे
मेरी आँखों के काजल पर पढ़ते थे क़सीदे
बता उन आँखों में अब काजल रचाऊं कैसे!
रजनीगन्धा के फ़ूलो को दिया था जो तुमने
उन पंखुड़ियों को बिखरने से बचाउ कैसे!
मिल के देखे थे जो हजारो ख्वाब हमने
उन ख्वाबों को हकीकत बनाऊँ कैसे !
🌷उर्मिला सिंह
पढकर बहुत अच्छा लगा ...
ReplyDeleteहसर्दिक धन्यवाद भास्कर जी
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