Monday, 8 December 2025

हमदर्द

हमदर्द.... ..


अश्कों को हमदर्द बना 

 दर्द गले लगातें हैं

मुझसे मत पूछो दुनिया वालों 

अधरों पर मुस्काने

 किस तरह सजातें हैं।।


 फूलों की चाहत में 

 काटों को भूल गए

 आहों ने जब याद दिलाया

 सन्नाटों से समझौता कर बैठे।।


सन्देह के घेरे में जज्बात रहे

लम्हे अपने,अपने न रहे

फरियादी फरियाद करे किससे

जब कातिल ही जज की ......

कुर्सी पर आसीन  रहे.... 


 लफ्जों में पिरोतें हैं 

 एहसासों के मोती

 संकरी दिल की गलियों में

 कौन लगाता कीमत इनकी।।

 

 निद्र वाटिका में 

 अभिलाषाएं मचलती 

  जीवन से जीवन की दूरी 

  दूर नही कर पाती हैं....

  फिर भी  देहरी पर

  उम्मीदों के दीप जलाती है।।


     उर्मिला सिंह

  

  

  

Monday, 1 December 2025

सुस्त कदम मेरे

सुस्त कदम मेरे....

   🌺🌺🌺

चलते  चलते,....

रुक जाते ....

एक मोड पर ये 

थके थके, रुके रुके

अलसाए ...

सोचों में हैं खोए 

कौन डगर जाऊं

कुछ समझ न पाए

ये सुस्त कदम मेरे।

 पांवों की सुस्ती

दिल दिमाग पर छाती

 हर राह यहां अब

 लगती है बेगानी 

 जर्जर नैया 

डोल रही 

भव सागर में

ना कोई खेवैया

सोच में डूबी

नश्वर काया ....

तेरा मेरा बहुत किया

क्या पाया क्या खोया

    इस जग से

सिर धुन धुन पछताता क्यों

सुस्त थके ...कदम मेरे....

        उर्मिला सिंह

 





Saturday, 8 November 2025

प्रातः नमन

कौन कहता है कि भगवान नहीं होता?

        जब कोई नज़र नहीं आता 

        तो भगवान नजर आता है

 खुदबख़ुद नजरें आसमां पर उठ जाती हैं

 एक विश्वास एक भरोसा मन में जग जाता है।

          

प्रातः नमन

कौन कहता है कि भगवान नहीं होता?

        जब कोई नज़र नहीं आता 

        तो भगवान नजर आता है

 खुदबख़ुद नजरें आसमां पर उठ जाती हैं

 एक विश्वास एक भरोसा मन में जग जाता है।

          

Tuesday, 29 April 2025

कर्म ही तेरी पहचान है..

कर्म ही तेरी पहचान है
******************

कंटक मय पथ तेरा ,
सम्भल- सम्भल कर चलना है !
चलन यही दुनिया का,
पत्थर में तुमको  ढलना है!!

उर की जलती ज्वाला से , मानवता जागृत करना है!
जख्मी पाँवों से नवयुग का, शंखनाद तुम्हे अब करना है !!

हरा सके जो सत्य को,
हुआ नही पैदा जग में कोई!
असत्य के ठेकेदारों का,
पर्दा फास तुझे अब करना है !!

वक्त से होड़ लगा,
पाँवों के छाले  मत देख !  
कर्मों के गर्जन से ,
देश को विश्वास दिलाना है!!

दृग को अंगार बना,
हिम्मत को तलवार !
दुश्मन खेमें में हो खलबली,
कुछ ऐसा कर जाना है !!

तुम सा सिंह पुरुष देख,
भारत माँ के नयन निहाल!
कोहरे से आच्छादित पथ, 
कदम न पीछे करना है !!

मिले हुए शूलों को अपना,
रक्षा कवच बनाना है !
कर्म रथ से भारत का ,
उच्च भाल तुझे करना है !!

           🌷उर्मिला सिंह🌷

Sunday, 9 March 2025

नींद में भटकता मन....

नींद.... में भटकता मन..... 

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नींद में भटकता मन 

चल पड़ा रात में, 

ढ़ूढ़ने सड़क पर..... 

खोए हुए ..... 

अपने अधूरे सपन... 


परन्तु ये सड़क तो.... 


गाड़ी आटो के चीखों से 

आदमियों की बेशुमार भीड़ से 

बलत्कृत आत्माओं के 

क्रन्दन की पीड़ा लिए 

अविरल चली जा रही 

बिना रुके बिना झुके l 


लाचार सा मन 

भीड़ में प्रविष्ट हुआ 

रात के फुटपाथ पर 

सुर्ख लाल धब्बे 

इधर उधर थे पड़े 

कहीं टैक्सियों के अंदर 

खून से सने गद्दे 

लहुलुहान हुआ मन 

खोजती रही उनींदी आंखे 

खोजता रहा  बिचारा मन 


 आखिरकार लौट आया 

 चीख और ठहाकों के मध्य 

 यह सोच कर कि...... 

 सभ्य समाज के 

 पांव के नीचे..... 

 किसी की कुचली...... 

  इच्छाओं के ढेर में.... 

 दब कर निर्जीव सा 

 दम तोड़ दिया होगा 

खोया हुआ मेरा..... 

अधुरा सपन........ 

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उर्मिला सिंह