Sunday, 9 March 2025

नींद में भटकता मन....

नींद.... में भटकता मन..... 

*****0*****0*****

नींद में भटकता मन 

चल पड़ा रात में, 

ढ़ूढ़ने सड़क पर..... 

खोए हुए ..... 

अपने अधूरे सपन... 


परन्तु ये सड़क तो.... 


गाड़ी आटो के चीखों से 

आदमियों की बेशुमार भीड़ से 

बलत्कृत आत्माओं के 

क्रन्दन की पीड़ा लिए 

अविरल चली जा रही 

बिना रुके बिना झुके l 


लाचार सा मन 

भीड़ में प्रविष्ट हुआ 

रात के फुटपाथ पर 

सुर्ख लाल धब्बे 

इधर उधर थे पड़े 

कहीं टैक्सियों के अंदर 

खून से सने गद्दे 

लहुलुहान हुआ मन 

खोजती रही उनींदी आंखे 

खोजता रहा  बिचारा मन 


 आखिरकार लौट आया 

 चीख और ठहाकों के मध्य 

 यह सोच कर कि...... 

 सभ्य समाज के 

 पांव के नीचे..... 

 किसी की कुचली...... 

  इच्छाओं के ढेर में.... 

 दब कर निर्जीव सा 

 दम तोड़ दिया होगा 

खोया हुआ मेरा..... 

अधुरा सपन........ 

*****0*****0****

उर्मिला सिंह 











नींद.... में भटकता मन..... 

*****0*****0*****

नींद में भटकता मन 

चल पड़ा रात में, 

ढ़ूढ़ने सड़क पर..... 

खोए हुए ..... 

अपने अधूरे सपन... 


परन्तु ये सड़क तो.... 


गाड़ी आटो के चीखों से 

आदमियों की बेशुमार भीड़ से 

बलत्कृत आत्माओं के 

क्रन्दन की पीड़ा लिए 

अविरल चली जा रही 

बिना रुके बिना झुके l 


लाचार सा मन 

भीड़ में प्रविष्ट हुआ 

रात के फुटपाथ पर 

सुर्ख लाल धब्बे 

इधर उधर थे पड़े 

कहीं टैक्सियों के अंदर 

खून से सने गद्दे 

लहुलुहान हुआ मन 

खोजती रही उनींदी आंखे 

खोजता रहा  बिचारा मन 


 आखिरकार लौट आया 

 चीख और ठहाकों के मध्य 

 यह सोच कर कि...... 

 सभ्य समाज के 

 पांव के नीचे..... 

 किसी की कुचली...... 

  इच्छाओं के ढेर में.... 

 दब कर निर्जीव सा 

 दम तोड़ दिया होगा 

खोया हुआ मेरा..... 

अधुरा सपन........ 

*****0*****0****

उर्मिला सिंह 











Tuesday, 25 February 2025

बिखरी जिंदगी..


  

बिखरी जिंदगी......

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दिल टूटता गया 

 हम बिखरते गए

सम्हलने की कोशिश में

हर बार  शिकस्त खाते गए

 लहूलुहान कदम

चलते रहे दर्द चुभते रहे

   अधर मुस्कुराते रहे

तन्हाइयों से अश्क ...

गुफ्तगू करते.....

 बिखरी जिंदगी को ....

समेटने की कोशिश

 फिर वहीं....

उदासी के लिबास में 

 लिपटी मेरी मुस्कान

न शिकवा न शिकायत

 मेरी बिखरी जिन्दगी  को

 हौसला देते, बस हौसला देते

 हम खामोश,निर्विकार

      🌷उर्मिला सिंह🌷

Saturday, 22 February 2025

हृदय में क्रंदन

हृदय में क्रंदन उर ज्वाला,जीवन गीत लिखूं कैसे 

अश्कों के सजल रथ में, मोम से ख्वाब  पिघलते

व्यथा की पीर दिशाओं में हवाओं के संग भटकते

बिखरे स्वप्न फूलों से,मन अंचल में छुपाऊं कैसे?


 हृदय में क्रंदन उर ज्वाला,जीवन गीत लिखूं कैसे


भावों के गीत मनोरम सब जीवन से लुप्त हुए 

आहों की सरगम में जीवन के दिन रात व्यतीत हुए।

आरोह,अवरोह,पकड़ सब भूल गया विकल मन.... भव सागर के लहरों से जीवन नैया पार करूं कैसे।


हृदय क्रंदन उर ज्वाला जीवन गीत लिखूं कैसे...

 

स्वर खोया शून्य में,अग्नि में समर्पित तन 

उड़ती चिंगारियों के बाद बचेगी थोड़ी भस्म

सजल दृगो की करुण कहानी..गंगा में प्रवाहित 

वेदना कणों की समर्पण के गीत लिखूं कैसे।


हृदय क्रंदन उर ज्वाला जीवन गीत लिखूं कैसे....।


                  उर्मिला सिंह






Saturday, 15 February 2025

प्रेम......की सीढ़ियां

प्रेम की सीढ़ियां,....
      प्रेम की अभिव्यक्ति
          मौन से होती है
      प्रेम सम्मान चाहता है
          अपमान नहीं
       प्रेम स्वीकृती चाहता है 
          अस्वीकृती नहीं
        प्रेमाश्रु समझ सके..
     प्रेम ऐसा दिल चाहता है
      प्रेम  समर्पण चाहता है
              त्याग नहीं
        प्रेम हास्य चाहता है
              रुदन नहीं
        प्रेम विश्वास चाहता है
            अविश्वास नहीं
          प्रेम साथ चाहता है
            तन्हाइयां नहीं
          प्रेम मौन होता है
                मुखर नहीं
           प्रेम पद चिन्हों को....
             छोड़ जाता है 
            जमाने के लिए.....
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          🌷उर्मिला सिंह🌷

Wednesday, 12 February 2025

प्रार्थना का मूल रूप

प्रार्थना का मूल रूप.....

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प्रार्थना जितनी गहरी होगी 

उतनी  ही  निःशब्द होगी

कहना चाहोगे बहुत कुछ 

कह ना पाओगे कभी कुछ।


विह्वल मन होठों को सी देंगे

अश्रु आंखों के सब कह देंगे

संवाद नही मौन चाहिए .....

 प्रभु मौन की भाषा समझ लेंगे।।

        💐💐💐💐

    

          

 




  

  

 

 

 



 

 

 

Friday, 10 January 2025

वक्त

वक्त तेरी राहों  पे चलते चलते उम्र ढल जाती है

बिन जिए ये जिन्दगी जाने कैसे गुजर जाती है।।


न शिकवा न शिकायत खामोशियों का अlलम है

वक्त की मेहरबानियों के आगे जिंदगी हार जाती है।


कहां से चले थे कहां पहुंचे गए  हम पता नहीं

सुरभित सांसें आज वेदना के स्वर में खो जाती हैं।


मिट मिट कर जीवन मूल्य चुकाएं हैं नश्वर जग में

वक्त वेदी पर,अश्रु,लहरों के अर्घ्य चढ़ाने आती है।


जीवन के प्रश्नोत्तर समाप्त सभी हो जाते है.....

जब आशाएं बिन मंजिल पाए अदृश्य हो जाती हैं।


                  🌷उर्मिला सिंह🌷