ज़ख्म से जब जख्म की आंखे मिली
दिल के टुकड़े हुवे जख्म मुस्कुराए.....।
जख्म ने हंस कर जख्म से पूछा.....
कहो कैसे गुजरे दिन अश्कों के समंदर में...।
अतीत के अंचल के साए में रात गुजरी
दिन की न पूछ यार मेरे की कैसे गुजरी।।
उर्मिला सिंह
ज़ख्म से जब जख्म की आंखे मिली
दिल के टुकड़े हुवे जख्म मुस्कुराए.....।
जख्म ने हंस कर जख्म से पूछा.....
कहो कैसे गुजरे दिन अश्कों के समंदर में...।
अतीत के अंचल के साए में रात गुजरी
दिन की न पूछ यार मेरे की कैसे गुजरी।।
उर्मिला सिंह
सात भांवरों की थकान उतारी न गई
दो घरों के होते हुवे नारी पराई ही रही।
जिन्दगी का सच ही शायद यही है.....
सभी कोअपनाने में अपनी खबर ही न रही।।
पर ये बात किसी को समझाई न गई।।
उर्मिला सिंह
कभी कभी मन ख़्वाबों के .....
वृक्ष लगाने को कहता......
सीचने सावारने को कहता....
दिमाग कहता ....
पगली !तेरे पौधों को सीचेंगा कौन
किसे फुर्सत है .....
तेरे ख्वाबों को समझने का......
तेरी आशाओं की .....
कलिया चुनने का.....
ये दुनिया वर्तमान को जीती है
अतीत को भूल जाती है .....
भविष्य के सपने बुनती है.....
इस तरह जिन्दगी चलती है
जिन्दगी की इतनी सी कहानी है.....
तुम हो, तो दुनिया अपनी है
नही तो एक भूली बिसरी कहानी है।
उर्मिला सिंह
बस यूं ही....कलम चल पड़ी।
जीवन की ऊबड़ खाबड़ पगडंडियों पर
कभी धूप छांव कभी कंटकों पर चल पड़ी
आंसू और मुस्कुराहटों सेउलझ पड़ी।।
बस यूं ही ......कलम चल पड़ी।
कभी सूनी दीवारों को देखती
यादों के चिराग जला कुछ ढूढती
नज़र आते मकड़ी के जाले
छिपकली के अंडे टूटी सी खटिया पड़ी।।
बस यूं ही .....कलम चल पड़ी।
कुछ नीम की सूखी दातून
तो कुछ पुराने दंत मंजन की पुड़िया पड़ी
साबुन के कुछ टूटे टुकड़े
गर्द धूल से भरी टूटी आलमारी रोती मिली।।
बस यूं ही .....कलम चल पड़ी।
मेज पर पडे कुछ पुराने कागज के पुलिंदे,
बिखरे अपनी करुण दास्तां सुनाते
गुजरी रातों की कहानी सुनाते।
कलम चलती रही शब्द तड़पते रहे
रूह सुनाती रही दस्ता अपनी पड़ी पड़ी।।
बस यूं ही.....कलम चल पड़ी।
पूजा की कोठरी के धूप की सुगंध -
से लगता सुवासित आज भी खंडहर
मंत्रोचारण घंटे की आवाज गूंजती कानों में
शंख ध्वनि प्रार्थना के भाव प्रचंड
कलम भी दर्द की कराह से हो गई खंड खंड
कुछ न कह सकी बस चलते चलते रो पड़ी।।
बस यूं ही.....कलम चल पड़ी।
उर्मिला सिंह
भारत माँ का मुकुट हिमालय है
तो हिंदी मस्तक की बिंदी ।
पहचान हमारी अस्मिता हमारी
अभिमान हमारा है हिंदी ....
।हिंदी भाषा के विकास का इतिहास भारत में आज का नहीं सदियों पुराना है । भारत की राज भाषा हिंदी,विश्व की भाषाओं में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
हिन्दी भाषा को जानने के लिए यह जानना परम आवश्यक है कि हिन्दी शब्द का उद्गम कैसे हुआ ।
हिंदी शब्द संस्कृत के सिन्धु शब्द से उत्पन्न हुआ है।
और सिंधु , सिंध नदी के लिए कहा गया है।
यही सिंध शब्द ईरानी भाषा मे पहले हिंदू, फिर हिंदी और बाद में हिन्द के नाम से प्रचलित हुआ और इस प्रकार हिंदी का नामकरण हुआ ।
हिंदी का उद्भव संस्कृत से हुआ जो सदियों पुरानी और अत्यंत समृद्ध भाषा है। और इसी संस्कृत भाषा से हमारे वेद ,पुराण,मन्त्र आदी प्राचीन काव्य और महाकाव्य लिखे गए हैं।
हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है जिसे विश्व मे सबसे अधिक वैज्ञानिक माना गया है ।
हिंदी साहित्य का क्षेत्र बहुत ही परिष्कृत और विस्तृत है।
साथ साथ हिंदी व्यवहारिक भाषा है। बच्चा जन्म लेने के
पश्चात सर्व प्रथम माँ शब्द का ही उच्चारण करता है ।
हिंदी भाषा में प्रत्येक रिश्तों/सम्बन्धों के लिए अलग अलग शब्द होते हैं।जबकि अन्य किसी भाषा में ऐसा नहीं मिलता।
हिंदी भाषा की 5 उप भाषाएँ हैं तथा कई प्रकार की बोलियाँ प्रचलित हैं। आज कल इंटरनेट पर भी हिंदी भाषा का बाहुल्य है। हिन्दी ऐसी भाषा है जो हमें सभी से जोड़ने काप्रयत्न करती है । हिंदुस्तान के हर प्रदेश में हिंदी भाषा बोली जाती है भले ही टूटी फूटी क्यों न हो ।
विश्व में सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा हिन्दी ही है।ऐसा मेरा मानना है।
युग प्रवर्तक भारतेन्दु हरीश चंद्र जी ने हिन्दी साहित्य के माध्यम से नव जागरण का शंखनाद किया।
उन्होने लिखा:
"निज भाषा उन्नति है,
सब उन्नति का मूल।
बिनु निज भाषा ज्ञान के,
मिटे न हिय का शूल ।"
हमारे देश का दुर्भाग्य रहा है कि हिन्दी भाषा का जो स्थान होना चाहिए वो आज तक हिंदी भाषा को प्राप्त न हो सका।
अतएव आप सभी से अनुरोध है कि जितना हो सके हिंदी भाषा के विकास हेतु कार्य करें।
किसी भी देश की मातृ भाषा उस देश का श्रृंगार/गौरव होता है अतएव उस श्रृंगार को निरंतर सजाते संवारते रहें।
जितना भी हो सके हमलोगों को हिंदी के विकास के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।
हिंदी भाषा हमारी पहचान है, हमारी आन -बान- शान है।
धन्यवाद...
जय हिंद .
जय भारत...।।
..... उर्मिला सिंह
जिन्दगी की परिभाषा....बस यूं ही
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नित नए अनुभवों से गुजरती है
नयन नीर से सींचत करती है
हृदयांकुरों को प्लवित पुष्पित करती
बस स्वयं से ही नही मिल पाती है।
ये कैसी दुनिया में सांसे लेती है जिन्दगी
तूं सभी की है पर तेरा कोई नही है।।
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आसूंओं की कहानी .....
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होठों पर हसीं आंखों में पानी....
बस इतनी सी है तेरी जिंदगानी
खुशियों से भरी निकलती हैं जब तूं....
दुनिया सारी हंसती है.......
गम के अंधेरे में छुपाती है
बहलाती है,समझाती है स्वयं को...
झरते हैं तब ,ये जब सारी दुनिया सोती है.....
तेरी कद्र करे कोई......
ऐसी कोई हस्ती ,दुनिया में नही मिलती।।
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हंसी .....
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तूं भी क्या कमाल करती है
कितने गुणों को स्वयं में समेटे है
कभी बच्चों से खिलखिलाती
कभी फीकी मुस्कुराहट से
दिल के हाल बताती.....
कभी दोस्तों के साथ ठहाको में मस्ती
कभी आंसुओं से आंचल भिगोती
अनेक रूपों के लहरों में बहती
हर हाल तूं सभी का साथ देती
जिन्दगी की कद्र तो सच कहूं....
बस एक तूं ही तो करती... बस तूं ही तो करती है।।
🌷उर्मिला सिंह 🌷