कोमल सपनो के कोई पंख न काटो
उड़ने दो इनको बन्धन में मत बांधो।
स्वप्नों को जब आकाश मिलेगा
मन वीणा से सुर गान सजेगा
मेघों से तृप्ति ,किरणों से दीप्ति लिए
स्वप्नों की मेघमाला से धरती को सजायेगा।
कोमल सपनो का आरोहण मत रोको
उड़ने दो इनको बन्धन में मत बांधो।।
स्वप्नभाव बीजों का संग्रहालय होता
लहलहाते अंकुरित भाव धरा पर जब
धरती स्वर्ग सम दिखने लग जाती तब
नव सपनों से पुष्पित पल्वित धरा होती।
कोमल सपनो का अवरोहण मत रोको
उड़ने दो इनको बन्धन में मत बांधो।।
नव प्रभात नव विहान चाहते हो नव स्वप्न पढ़ो
नव जवान नव भाव नया हिंदुस्तान चाहते हो
तो संस्कृति संस्कार नव ज्ञान से हिदुस्तान बदलो
राष्ट्र भक्ति को सींमा परिधि में मत बांधो....
ये ह्रदय ज्वार है जो कण-कण में बसताहै
देश की तरुणाई में देश भक्ति का उबाल आने दो ।
नूतन में ढलना है गर तो बन्धन में मत बांधो
तरुणाई को बिछे आँगरों से परिचित होने दो।
इनके कोमल सपनो के कोई पंख न काटो
सपनो को साकार करो बन्धन में मत बांधो।।
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उर्मिला सिंह
वाह!उर्मिला जी ,बहुत सुंदर भावों से सजी रचना ।
ReplyDeleteधन्यवाद शुभ जी।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हमारी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए आभार श्वेता जी।
Deleteसुन्दर प्रेरक रचना हेतु बधाई व शुभकामनाएं। ।।।
ReplyDeleteपुरषोतम कुमार सिन्हा जी आभार आपका।
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मान्यवर।
Deleteबढ़िया गीत।
ReplyDeleteशुक्रिया डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी।
Deleteस्वप्नभाव बीजों का संग्रहालय होता
ReplyDeleteलहलहाते अंकुरित भाव धरा पर जब
धरती स्वर्ग सम दिखने लग जाती तब
नव सपनों से पुष्पित पल्वित धरा होती।
बहुत सुन्दर सृजन....
स्वप्न देखेंगे फिर उन्हें साकार करेंगे तो नवसृजन होगा।
ह्र्दयतल से धन्यवाद सुधा जी।
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