हे वीणा वादिनी ......
हे उद्धार कारणी मुझे अवगुणों से दूर रखना
मन के अंधेरे को ज्ञान ज्योति का प्रकाश देना
पंकज सी निर्मलता मेरी जिन्दगी को प्रदान कर
मेरी राहों को अपनी आशीष का वरदान देना!!
माँ शारदे वर दे.....
हे वीणा वादिनी........
मेरा शब्द शब्द तेरा रूप हो सत्य का पतिबिम्ब हो
निर्भीक हो अभिमान से दूर, प्रेम का प्रतीक हो
ज्ञान ज्योति बिखेरे.... इंसानियत का संदेश दे
मेरी रचना का ऐसा स्वरूप हो माँ यही वरदान हो!!
माँ शारदे वरदे......
हे वीणा वादिनी..........
दुष्टों का संहार कर सके शब्दों को ऐसा आकार दो
हर मन की व्यथा से द्रवित हो मुझे ऐसा ह्रदय दो
मेरी सास सास में तूँ ,चरणों में समर्पित तन मन रहे
जीत मेरी हार भी तुझको अर्पित ,मन को विश्वासःदो
माँ शारदे वर दे....
हे वीणा वादिनी.....
बसन्ती चूनर ओढे धरा मुस्कुराये मेघ की कृपा रहे
बन बाग तरुवर उल्लसित पक्षियों का कलरव रहे
पुष्प झूमे डाल डाल मदमस्त भंवरे कलियों को चूमे
मलय सुगन्धित बहे प्रीत से हर ह्रदय चहकता रहे..
माँ शारदे वर दे......!
मां शारदे वर दे........!!
# उर्मिल
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 07 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद दिव्या अग्रवाल जी हमारी रचना को चर्चा मंच पर शामिल करने के लिए।
Deleteदिव्यता बिखेरती सुन्दर रचना।
ReplyDeleteआभार शांतनु सान्याल जी ।
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteह्र्दयतल से आभार मान्यवर आपका।
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