आकुल व्याकुल ह्रदय तुझे पुकारे
चल - चल रे मनवाँ तूँ राम दुआरे......।।
प्रभु मेरे!भटकत मन बिन तेरे
अब तो उद्धार करो देव मेरे
तरसत हिय कमल नयन को पल - पल
किस विधि परसू चरण तिहारे।।
प्रभु मेरे! भटकत मन बिनु तेरे
चल -चल रे मनवा राम दुआरे......।।
कठिन कुटिल ये दुनियां ना भावे
नित-नवल रूप में माया भरमावे
तृष्णा -ठगनी मोहिं छलती जाऐ....।।
'अहं' की छाया डेरा डाले
तेरी महिमा तूँ ही जाने......
चल-चल रे मनवा राम दुआरे ......।।
जीवन रसहीन हुआ जाता है
नेह मोह फांस बना जाता है
तेरी करुणा की रस धार का
प्यासा मन प्यासा ही रह जाये .....।।
आकुल विकल ह्रदय तुझे पुकारे
चल चल रे मनवाँ राम दुवारे...... !!
जग विस्तीर्ण,मोह उदधि लहरों से
मुक्त करो,अपने निर्मल प्रकाश से
मुर्झाती पथ प्रतीक्षा में तन की डाली
पद पूजन को कब तक मन तरसे .......!!
नैनन की लौ मद्धिम पड़ती जाए
चल -चल रे मनवाँ राम दुआरे...... ...।।
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उर्मिला सिंह
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५-१२-२०२०) को 'निसर्ग को उलहाना'(चर्चा अंक- ३९०६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
अनिता सैनी जी आभार आपका हमारी रचना को
Deleteचर्चा में शामिल करने के लिए।
अति सुन्दर है ये आर्त पुकार । आभार ।
ReplyDeleteशुक्रिया अमृता तन्मय जी ।
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपको मान्यवर।
Deleteआध्यात्म की तरफ दौड़ता विचलित मन।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना दी ।