अन्तर्मन की निर्झरणी नित....
सच की राह दिखाती है !!
मिथ्या है नाशवान जगत ये ,
प्रेम,भक्ति भाव आराधना,
है एक यही सत्य जगत में,
सकल जगत को बतलाती!!
पर मूरख मन ,
माया ,लोभ, मोह के,
भ्रमित जाल में उलझा....
संवेदना विहीन हो ,
मन की भाषा .....
समझ कहाँ पाता है!!
परोपकार से दूर,
सदा स्वार्थ में अन्धा,
निर्मम कर्म कर जाता है!!
अंत समय जब आता ..
प्रभु की टेर लगाता...
ह्रदय हीनता पर स्वयम को,
धिक्कार लगाता है !!
जन्मों के कर्म....
चल चित्र सरीखे...
आंखों के समक्ष ,
आता है...
दया, करुणा के भाव तभी
उसे समझ में आता है !!
***0***
🌷ऊर्मिला सिंह
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