कभी कभी मन कुछ कहना चाहता है पर कहाँ .....किससे..... तब कागज के निर्जीव पन्नों पर आपने भाओं को उकेर कर........!
मन ने आज आवाज दी
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मन ने आवाज दी आ फिर कोई नज़्म लिखें....,
दर्द से भरी आँखे को शायद सुकून आजाये!
ये जख्मों का ज़खीरा चल कहीं और छुपा दे,
या इन्हें पन्नों के हवाले कर पलको को सहलाये!
भीगीं नज़्म शबनमी बूंदों से लिख लबों पे सजाये.....!
आज फ़िर कोई नज़्म लिखे और गुनगुनाये....!
🌷ऊर्मिला सिंह
वाह उर्मिला दी बहुत सुंदर 👌👌
ReplyDeleteधन्य वाद अनुराधा
DeleteAti sundar
ReplyDeleteधन्य वाद विभा जी
Deleteदिल के एहसास जब प्रेम को प्रेम को महसूस करते हैं ... नज़्म की आवाज़ आती है ...
ReplyDeleteखूबसूरत नज़्म ...
हार्दिक धन्यवाद
Deleteवाह दी क्या बात है बहुत उम्दा।
ReplyDeleteधन्यवाद कुसुम
Deleteधन्यवाद कुसुम
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