सियासतें -अंदाज
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पेट की भूख ने रोटी चुरा के खालिया तो उसे चोर करार कर दिया!
जो मुल्क को डकार गया वो वफ़ादार ही बना रह गया!
मज़हब और इन्सानियत आदमी की फ़ितरत पर रो पड़े!
मज़हब के कंधे का इस्तमाल कर राहोंरस्म का खून कर रहेे!
अपने ज़मीर की बोली लगा रहा आज का इंसान
सियासत में कुर्सियों की हबस ने क्या से क्याबना दिया!
जिन्दगी आसान कब थी मालिक तेरे दरबार में
ईमान की चिता सरे आम जल रही जीना मोहाल कर दिया!!
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🌷ऊर्मिला सिंह
सुन्दर पंक्तियाँ ...
ReplyDeleteकड़वा सत्य लिख दिया दीदी
ReplyDeleteजीना तो मुहाल हुआ
नहीं मौत भी सरल जहाँ में
ऐसा मन बेहाल हुआ !
हार्दिक धन्यवाद जी
Deleteसच पर करारी चोट करती क्षोभ से भरी रचना ,
ReplyDeleteसार्थक और यथार्थ दर्शन करवाती रचना दी ।
सार्थक रचना दी..सुन्दर पंक्तियाँ 👌👌👌
ReplyDeleteधन्यवा नीतू जी
ReplyDeleteधन्यवाद कुसुम जी
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