गीता पढ़ना तो विगत कई सालों से था परन्तु उस भाव से नही बस......पढ़ना है -थोड़ा ज्ञान में वृद्धि करने के लिए....
पर पढ़ते- पढ़ते न जाने कौन से भावों में दृढ़ संकल्पित हो कर पढ़ने लगी ,मुझे पता ही नही चला । किसी भी चीज की गहराई में जब हम जातें हैं कुछ भाव मन में उठते हैं जो आनन्द दायीं महसूस होतें हैं ।
वही भाव आप सभी के समक्ष रख रही हूँ....
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कृष्ण सोच में....
कृष्ण भाव में
कृष्ण शब्द शब्द में रचे
कृष्ण ह्रदय में
कृष्ण नयन में
कृष्ण धड़कनों में रम गये।।
कृष्ण जिह्वा पे....
कृष्ण रोम रोम में....
कृष्ण को निहारते ...
कृष्ण को पूजते......
कृष्ण के दीवाने होगये.....।।
कृष्ण कर्म प्रवाह में.....
रवि के प्रखर पकाश में
चन्द्रिका की चांदनी में....
गोपियों के रास में....
कृष्ण बांसुरी की तान में....
कृष्ण से सम्मोहित जन - जन होगये.....।।
कृष्ण गीत में ...
संगीत में....
राधिका के नि: स्वार्थ प्रीत में...
मीरा के सरल भक्ति में...
गोपियों के हास में परिहास में
कृष्ण यमुना के नीर में
कृष्ण कहते-कहते प्रेममय होगये....।।
द्रौपदी के चीर में
देवकी की पीर में
यसोदा के ममत्व में
कण-कण में व्यप्त कृष्ण....
भाव में विभोर.....
नयनअश्रु ढरक गए.....
कृष्ण कहते कहते कृष्णमय होगये।।
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उर्मिला सिंह
वाह! बहुत सुन्दर भाव उत्पन्न हुआ आपमें। शुभकामना। आप खूब पढें।
ReplyDeleteइतनी अच्छी शुभकामना के लिए थे दिल से शुक्रिया आपका करती हूं।
Deleteगीता ही कृष्णमय है
ReplyDeleteलाजवाब रचना मैम
प्रीती मिश्र जी स्नेहिल धन्यवाद आपको।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी।
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद रविन्द्र जी, हमारी कविता को चर्चा मंच पर रखने के लिए।
ReplyDeleteकृष्णमय होने के बाद तो कुछ बचता ही नहीं ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
हार्दिक धन्यवाद जी।
Deleteभावपूर्ण और सुंदर सृजन
ReplyDeleteआग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें