Tuesday, 27 February 2024

बस यूं ही......

  
तनहाइयां बेहतर हैं उस भीड़ से जनाब
 जहांअपनापन दम तोड़ता हो ओढ़े नकाब ।।

 मरहम चले लगाने तो गुनहगार हो गए हम
 तेरे यादों के पन्नों में ख़ाकसार हो गए हम ।।

जब तक कलम से भाओं की बरसात नही होती
ऐ जाने ज़िगर हमारी दिन और रात नही होती।।

  यादों की परी मुस्कुरा के इशारों से बुलाती हमे
  बेखुदी में चले जारहे,अब न रोके कोई हमें।।

   शब्दों के अलावा कुछ और नही मेरा....
शजर लगा के बियाबान में भटकता दिल मेरा।।

                   उर्मिला सिंह

4 comments:

  1. तनहाइयां बेहतर हैं उस भीड़ से जनाब
    जहांअपनापन दम तोड़ता हो ओढ़े नकाब ।।
    वाह 🙏

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    1. हार्दिक धन्यवाद मान्यवर

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