Sunday, 2 December 2018

क्षितिज......

दूर कही क्षितिज से....लगता है जैसे.....

धरती व गगन मिले  श्रावणी  उमंग में।
भीनी भीनी बयार बहे संदली सुगन्ध में।
बज रही ....मन तरँग ....उत्सवों के रंग में।
हरित धरा लहरा रही कृषकों के उमंग में।।

तट व्याकुल भये..... मिलन के आनन्द में।
नृत्य भाव जग रहे.... सागर के आनन्द में।
पात पात सुघड़ हो रहे ..वर्षा के नहान से।
वन हर्षित होरहे पी-पी पपीहा की गूँज से।।
                    ****0****
                              🌷ऊर्मिला सिंह

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