Friday, 3 May 2019

गरीबों की दास्तां......


गरीबों की दास्तां
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गरीबों की ....जिन्दगी में ,
सपनो की...... चिताएं जलती हैं!
पिघलते दर्द वेदना के .....
ज्वार भाटा सी ......कसक उठती है!
ऊँचे महलों में .....रहने वालों को,
होश रहता नही .....झोपड़ियों का
दब के रह जाती .....सिसकियां
सुनने वाला कोई .... रहता नही है!
इसी हाल में जीते....... ,
इसी हाल में मर जाते......'
सियासत खूब होती है......
लुभावने वादे खूब होते हैं......।
जरूरत वोट की पूरी होते ही...
पानी के बुलबुले से बह जाते हैं।।
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                                  ऊर्मिला सिंह

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर भावों से सजी सुन्दर रचना प्रिय दी
    सादर

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