जिंदाबाद - जिंदाबाद ऐ मिलावट जिन्दाबाद
गरीबों की आहों से करती तूँ ख़ुद को आबाद
जिंदाबाद - जिंदाबाद.........
चीनी में चावल में और तूँ ही तूँ है मसालों में
दालों में तेलों में और तूँ ही तूँ है पूजा के सामानों में
तेरे दम से बनियों की दुकाने करती कितने जीवन बर्बाद
जिंदाबाद - जिंदाबाद......
दवाओं में दुवाओं में दिखती है तूँ रिश्तों की कतारों में
इश्क़ में ईमान में तूँ ही तूँ दिखती धरती से आसमान में
बनावटी मुस्काने,बनावटी मन्दिर मस्जिद की अजाने
श्रध्दा छुप हुई असत्य की गोद में भगवान भी कैसे सुने फ़रियाद
जिंदाबाद -जिंदाबाद.......
दूध दही में तूँ ही आसीन तूँ दोलतमंदो की पूजन अर्चन में
नेताओं की बात मिलावट दोहरे आचरण के पैमानों में
मिलावट की आँधी रुक न सकेगी कानूनी बाधाओ से
देश के नर नारी आंखे खोलो नहीं तो हो जाओगे बर्बाद
जिन्दाबाद - जिंदाबाद ऐ मिलावट जिन्दाबाद........
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उर्मिला सिंह
आज कल हमलोग जो मिलावट से परिपूर्ण जीवन जी रहे हैं उस परिपेक्ष में लिखी गई यह रचना बहुत स्पस्ट रूप से ब्याख्या करती है...
ReplyDeleteसच पूछो तो आज का कोई भी क्षेत्र मिलावट से अछूता नही है....
💐💐मङ्गलमय .....
सुप्रभात.......💐💐
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२३ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक धन्य वाद श्वेता जी मेरी रचना को साझा करने के लिए
Deleteवाह! बेहद खूबसूरत एवं सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सुजाता जी
Deleteवाह!बेहतरीन सृजन ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्य वाद शुभा जी
Deleteसुंदर लयबद्ध गीत/कविता।
ReplyDeleteनई रचना सर्वोपरि?
हार्दिक धन्य वाद Rohitas ji
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