Friday, 18 December 2020

गज़ल

जिन्दगी  ख़फ़ा तुझसे सारे  नजारे  हो गये
उम्र की देहरी पे रुकने को मजबूर हो गये!

बेपरवाह जिंदगी हौसलों की कश्ती ले चली 
जिस जगह पर रुक गई वही किनारे हो गये!!

गरीबी की चक्की में पिसते रहे ता उम्र जो
बच्चे स्कूल जाने को उनके तरसते रह गये!!

सरेआम ज़मीर की बोली लगती रही यहाँ
चन्द  सिक्को पे डोलते ईमान देखते रहगये !

इस दौर को कोसना भी लाजमी होता नही
हर दौर में जयचन्द को झेलते रहगये!!

धर्म को खेल बना इन्सान को लड़ाती रही सियासत 
सियासत में नेता भी इन्सान से हैवान बन के रहगये!!
                          ****0****
                                      🌷उर्मिला सिंह




5 comments:

  1. अहसासों से भरी सुन्दर ग़ज़ल..।

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    1. जिज्ञासा जी नमस्ते आभार आपका उत्साहवर्धन करने के लिए।

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  2. श्वेता सिन्हा जी स्नेह ,हमारी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

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  3. शुक्रिया शांतनु सान्याल जी।

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