शब्द भाओं के पृथक-पृथक पुष्प होते हैं।
आंखे गीली होती हैं शब्दों को पीड़ा होती है
लेखनी ख़ामोश सी चलती रहती है......
शब्दों की सिसकियां पन्ने भिगोते रहतें है
शब्द सिहरते,बिखरते शब्द भी पीड़ित होते हैं
शब्द प्यार के मोती तो शब्दों में शूल होतें हैं
शब्दों में ही दुश्मन, शब्दों में मीत होतें हैं
शब्दों में नफ़रत शब्दों में संवेदना होती है
शब्दों में भक्ति शब्दों में ही श्रद्धा होती है ।।
शब्द गुदगुदाते शब्द हंसाते शब्द आंसूं लाते
शब्द रूठों को मनाते,शब्द विश्वास की डोर होते
शब्द भाओं के असंख्य पुष्प होतें हैं
शब्द कोमल सुन्दर और भाउक होतें हैं।
शब्द अजर अमर होते गीता रामायण होते
शब्दों का सम्मान करें उनको आत्मसात करें
नित नये शब्दों का आविष्कार करें.......
शब्द अनमोल होतें वाणी की पहचान होतें हैं।।
शब्दों की जुबान होती,व्यर्थ न समझो इनको
जख्मों पर शब्द मलहम का काम भीकरते हैं।
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उर्मिला सिंह
शब्द गुदगुदाते शब्द हंसाते शब्द आंसूं लाते
ReplyDeleteशब्द रूठों को मनाते,शब्द विश्वास की डोर होते
शब्द भाओं के असंख्य पुष्प होतें हैं
शब्द कोमल सुन्दर और भाउक होतें हैं।
बहुत ही बेहतरीन रचना आदरणीया दी।
हार्दिक धन्यवाद प्रिय अनुराधा जी।
Deleteअच्छी रचना की है उर्मिला जी आपने। शब्द ज़ख़्म देते भी हैं, भरते भी हैं।
ReplyDeleteजितेंद्र माथुर जी बहुत बहुत शुक्रिया।
Deleteबेहतरीन सृजन ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शुभा जी।
Deleteवाकई , शब्द एक ओर मरहम का काम करते हैं तो शब्द बहुत मारक भी होते हैं ।
ReplyDeleteबढ़िया विश्लेषण
बहुत बहुत शुक्रिया संगीता स्वरूप जी।
Deleteशब्दों की सार्थकता पर सुंदर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद पुरषोत्तम कुमार जी
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