Wednesday 22 December 2021

फुटपाथ...

 फुटपाथ बिछौना जिनका,आसमां छत है
          वो जिन्दगी की क्या बात करे।

उम्र तमाम हुई तन में साँस अभी बाकी है
सर्दी गर्मी ठंढ  सहे खेल मौत का बाकी है
सूरज का गुस्सा झेले चाँदनी की उपेक्षा.....
हर मौसम दर्द भरा दर-दर की ठोकर बाकी है।।
    
   जिनका फुटपाथ बिछौना,आसमाँ छत है
        वह जिन्दगी की क्या बात करे।।
 
  जीते जी एक हाथ जमीन को रहे तरसते 
  सहानुभूति भरे शब्दो के लिए रहे मचलते
  किस्मत लिखने वाले से पूछता बावला मन 
  रोटी नमक प्याज के लिए क्यों अश्क झरते ।। 

 जिनका फुटपाथ बिछौना,आसमाँ छत हैं
     वह जिन्दगी की क्या बात करे।

यह दुनिया जिन्दी लाशों से बनी दुनियां है
मौत जहां कुंआ होता,बदबूदार होती गलियां हैं
जहाँ भूख से बिलबिलाते तन, मौत एक दवा है
गरीबों के जीवन की होती यही कहानियां....।।


जिनका फुटपाथ बिछौना आसमाँ छत है
     वह जिन्दगी की क्या बात करें

   जहां सिकुड़ी हुई जिन्दगी सांसे गिनती है
   जहां जिन्दगी जख्मों की तुरपाई करती है  
   जहां किलकारी  से पहले बचपन खत्म होता
   जहां जिन्दगी नित्य जीती  मरती रहती है
   वहा सपनो की  कोई  कैसे बात करे।।

      जिनका फुटपाथ बिछौना आसमाँ छत है
           वह जिन्दगी की क्या बात करे।।  
                     उर्मिला सिंह




20 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 23 दिसंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. हार्दिक आभार रबिन्द्र जी हमारी रचना पटल पर शामिल करने के लिए।

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  2. मार्मिक
    समाज का कड़वा सत्य

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  3. मर्मस्पर्शी रचना।

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी

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  4. हृदयस्पर्शी सृजन 👌👌

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२४-१२ -२०२१) को
    'अहंकार की हार'(चर्चा अंक -४२८८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनिता जी हमारी रचना को मंच पर रखने के लिए।

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  6. तन में सांस , आंखों में ख्वाव लिये
    जन्मा इरु फुटपाथ पर
    बचपन गुजरा , गई जवानी तिनका
    बिनते बिनते इस फुटपाथ पर
    कफ़न ओढ़ धुल कि निकल जाऐगा
    बुढ़ापा भी एक दिन इस फुटपाथ पर।

    फिर क्यों जिन्दगी बात न करें इस फुटपाथ पर ।

    उत्तम अति उत्तम सृजन !

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    1. सराहना में लिए आभार ,धन्यवाद आतिश जी।

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  7. बहुत ही सुन्दर रचना

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  8. जहां सिकुड़ी हुई जिन्दगी सांसे गिनती है
    जहां जिन्दगी जख्मों की तुरपाई करती है
    जहां किलकारी से पहले बचपन खत्म होता
    जहां जिन्दगी नित्य जीती मरती रहती है
    वहा सपनो की कोई कैसे बात करे।।
    बहुत सुंदर।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी।

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  9. जिनका फुटपाथ बिछौना,आसमां छत है
    वो जिन्दगी की क्या बात करे।
    बहुत ही मार्मिक व हृदयस्पर्शि रचना! एक एक पंक्ति अन्दर तक घर कर रही है! और मन को विचलित कर रही है... !

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    1. सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद मनीषा जी

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  10. मार्मिक रचना

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनिता जी।

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