Thursday, 27 February 2020

नम आंखे......

नम हैं आंखे दिल में शोर बहुत है
हाथ में कलम दंगाइयों पर क्रोध बहुत है 
सिमट के रह गईं बस्तियां मोहब्बत की यहां 
इन्सान अपने चरित्र से गिर गया बहुत है!! 
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आईना किसी को गलत नहीं बताता 
वक्त लहर है किसी को नहीं बख्शता, 
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समय के संग होड़  लगा के चल ने वाला 
लहुलुहान पाँवों से काटें नहीं निकला करता! 
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लहुलुहान हुई दिल्ली अपनों ने ही ज़ख्म दिया 
नफ़रत की आग जला सियासत अपना खेल दिखाता!! 
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1 comment:

  1. दिल्ली की हालत पर सुंदर विचार व्यक्त करती हुई सामयिक रचना....
    💐💐

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