नई उमर की नई फसलों ,जो बोओगे वही काटना होगा
उठो वीर जवानों क्रांति मशाल अब तुम्हे जलाना होगा।
कुचक्र राजनीति का ,आज दुश्मन चला रहा
अनीति द्वेष की आग में किसानों को जला रहा
प्रपंच पाप रच के मति भ्रम देशद्रोही कर रहा
सत्य की नींव हिले नही प्रयास सदा तुम्हारा होगा।।
सुशुप्त राष्ट्रभक्ति की सोई हुई आत्मा को जगाना होगा
उठो,वीर जवानों क्रांति मशाल अब तुम्हे जलाना होगा।
चहुँ ओर दिशाएं तप्त ,नफ़रत की घटाएं छा रही
असंख्य लाल शहीद हुए , तब मिली ये आजादी
सश्य श्यामल धरा रहे पुनीत पावनी सदा.....
शहीदों का लहू इस जमीन से पुकारता होगा...
मिटे न आन बान माँ भारती की, प्रयास नित करना होगा
मौन त्याग सिंहनाद कर क्रांति मशाल तुझे जलाना होगा।।
बयार बसन्त की पतझड़ न बनने देना कभी
विश्वास लोकतंत्र का खोने न देना तुम कभी
अखण्ड भारत को दुश्मन अब न हिला सके कभी
सारे भारत में 'हर-हर बम' का फिर मंत्रोंच्चार होगा..
उठो जवानों पुनः सांप और सपोले का फन कुचलना होगा
अपने शंख नाद से क्रान्ति मशाल तुम्हे पुनः जलाना होगा।।
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उर्मिला सिंह
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-12-2020) को "उलूक बेवकूफ नहीं है" (चर्चा अंक- 3907) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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हार्दिक धन्यवाद डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी हमारी रचना मो चर्चा मंच में स्थान देने के लिए।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteह्र्दयतल से आभार मान्यवर।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद दिव्या अग्रवाल जी हमारी रचना को चर्चा में शामिल झरने के लिए।
ReplyDeleteसुन्दर रचना,ओजस्वी लेखन
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