Tuesday, 16 March 2021

प्राण पखेरू....

प्राण पखेरू जब उड़ गए ....
अश्रु पूरित नैन, सब देखते रह गए।

ढह गई अभिमान की अट्टालिकाएँ
द्वेष ,ईर्ष्ययाग्नि से, मुक्त आत्माएं
ये जगत किसका रहा है ,सोचो जरा.....
पंचतत्व की काया पंचतत्व में मिल गए।।

अश्रु पूरित नैन, सब देखते रह गए...।

मृग तृष्णा सदा छलती रही  उम्र को
भटकती काया बांहों में आसमाँ भरने को
अनमोल जिन्दगी निरर्थक ही रही जगत में
अंत समय कर्मों की भरपाई करते रहगये।।

अश्रू पूरित नैन,सब देखते रह गए....।
         
एक मुट्ठी राख आखिरी दौलत रह गई 
वो निशानी भी अंततः प्रवाहित होगई 
दया करुणा इंसानियत होतीअचल संपत्ति
जन्म मृत्यु अटल सत्य,चिरनिद्रा में विलीन होगये।।
अश्रु पुरित नैंन ,सब देखते रह गये।
            उर्मिला सिंह

25 comments:

  1. एक मुट्ठी राख आखिरी दौलत रह गई
    वो निशानी भी अंततः प्रवाहित होगई
    दया करुणा इंसानियत होतीअचल संपत्ति
    जन्म मृत्यु अटल सत्य,चिरनिद्रा में विलीन होगये।।
    बहुत ही लाजवाब शब्द चित्र उर्मि दीदी | अश्रुधारा में दुबे नयन किसी अपने के अवसान पर यूँ ही वेदना और करुणा में आकंठ डूब वैराग्य से भर जाते हैं | सच है एक मुट्ठी राख ही इस कंचन काया का अंतिम सच ही | निशब्द हूँ और भावुक भी ये रचना पढ़कर | ना जाने क्यों आपने इतनी पीड़ा उड़ेल दी इस रचना में | सादर

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    1. प्रिय बहन रेणू रचना की प्रसंशा करने के लिए बहुत बहुत बहुत आभार हमारी सोसाइटी में एक घटना
      होगई थी ..…..बस कुछ भाव आये उसे आप सभी के समक्ष रख दिया।

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  2. मनुष्य जीवन का सत्य , आखिरी निशानी भी बह जायेगी
    किन्तु मनुष्य के श्रेष्ठ कर्मों की छांप फिर भी यह जाती है
    भावपूर्ण रचना उर्मिला जी ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपका ।

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  3. बहुत बहुत सुन्दर

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    1. रचना की प्रसंशा करने के लिए धन्यवाद।

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    1. डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी हार्दिक धन्यवाद प्रोत्साहन के लिए।आपका।

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  5. यही शाश्वत सत्य है । जानते सब हैं लेकिन मानता कोई नहीं ।अंत में एक मुट्ठी रख ही बन जाना है ।
    चिंतनशील रचना ।

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    1. संगीता स्वरूप जी अन्तर्मन से धन्यवाद।

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ मार्च २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. प्रिय श्वेता जी इस रचना को मंच पर रखने के लिए आपकी आभारी हूँ।

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  7. मृत्यु तो अटल सत्य है जिसे कभी बिसराना नहीं चाहिए । हार्दिक अभिनंदन आपका उर्मिला जी इस सार्थक अभिव्यक्ति के लिए ।

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    1. रचना की सराहना के लिए आपकी ह्दय से आभारी हूँ जितेंद्र माथुर जी।

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  8. एक मुट्ठी राख आखिरी दौलत रह गई
    वो निशानी भी अंततः प्रवाहित होगई
    सही कहा यही है जीवन का अटल सत्य...
    बस हमारे कर्मों का लेखा जोखा याद रहता है वह भी कुछ समय ....।
    नश्वर संसार में नश्वर जीवन।
    लाजवाब भावाभिव्यक्ति।

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    1. रचना की प्रसंसा के लिए सुधाजी तहेदिल से शुक्रिया।

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  9. बहुत मार्मिक रचना...
    यही परम् सत्य है...
    शेष रह जाते हैं केवळ अश्रुपूरित नैन ही...
    अपने किये गए कर्मों का लेखा जोखा ही इहलोक और परलोक में संबंध स्थापित करते हैं...
    काया तो जला दी जाती है...

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  10. जीवन के वास्तविक सच से परिचित कराती
    भावपूर्ण रचना
    बहुत सुंदर
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
    आभार

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    1. बहुत बहुत शक्रिय ज्योतिखारे जी। अवश्य

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  11. आपकी सुंदर रचना मुझे भावों से भर गई,जीवन का से और सार ।बढ़िया सृजन ।

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    1. प्रोत्साहन के लिए आपकी आभारी हूँ जिज्ञासा जी।

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  12. अत्यंत मनोरम रचना...

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    1. धन्यवाद हरीश कुमार जी।

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