Saturday, 20 March 2021

भाओं का गुलदस्ता......

सही फैसले पर अटल रहना कामयाबी की निशानी होती है।
फैसला करके भूल जाने वालों से मंजिल दूर होती है।।

सूरज अंधेरा दूर करता है,पर अंधियारी रात भी होती है।
अज्ञानता के अंधकूप को ज्ञान की रोशनी दूर करती है।।

 महलो में बैठ कर झोपड़ियों की बातें अच्छी   लगती है 
 दर्दे-गरीबी को क्या जानो जो रातों में मजबूर सिसकती है।।
 
भूखे नङ्गे बच्चों के तस्वीरों की कीमत आंकी जाती है
फुटपाथ भूख से मरते बच्चों की बस्ती होती है।।

जिस आबो हवा में रहते हैं क्या बतलायें क्या क्या सहतें हैं।
रोटी महंगी,आंसूं की कीमत सस्ती होती है।।

स्वार्थ,नफ़रत की हवा किसी वायरस से कम कहाँ होती।
एक अमनो चैन छीनती दूसरी जिन्दगी मग़रूर
 करती है।।


              उर्मिला सिंह

12 comments:

  1. रचना अच्छी है । भाओं शब्द से उलझ रही । कृपया स्पष्ट करें।

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद प्रतिक्रिया के लिए संगीता स्वरूप जी।
    आशा है भविष्य में भी सहयोग मिलता रहेगा। मन,भाव में जब द्वंद होता है तब शब्द और भाव उलझ जातें हैं।
    शायद ऐसा ही कुछ इस रचना के साथ हुआ है।ठीक करने का प्रयास करूँगी।पुनः बहु बहुत धन्यवाद।

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  3. आपने द्वारा अभिव्यक्त भाव सच्चे हैं । अभिनंदन उर्मिला जी ।

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  4. आभार जितेंद्र माथुर जी।

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  5. भावात्मक प्रस्तुति

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  6. बहुत बहुत सुन्दर

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    1. हार्दिक धन्यवाद आलोक सिंह जी।

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  7. बहुत सुन्दर।
    मनोभावों की गहन अभिव्यक्ति।

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  8. अन्तर्मन से धन्यवाद मान्यवर,बहुत बहुत आभार।

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  9. बहुत ही भावों भरी होती हैं,आपकी रचनाएं । आपकी गूढ़ अभिव्यक्ति को हार्दिक नमन है ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी।

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