Thursday, 8 July 2021

नारी मन की वेदना...

मैं हर बार तपी कुंदन बन निखरी
कंटक बन में घिर,पुष्प बनी निखरी
फिर भी कदम थके नही रुके नही..... 
बियाबान में चलती रही चलती ही रही।।

पँखो को काटा छाटा कितनी बार गया
फिर भी हौसलों का पग अविचल ही रहा
घायल मन पाखी उड़ने को बेचैन रहा....
विस्तृत गगन की छाँव में मन रमा रहा।।

थके नही कदम रुके नही चलते ही रहे....

 विश्वासों के मणि मानिक से लबरेज रही
 जितने भी तीर चले रुधिर बहे  ह्रदय में
 उतना ही अडिग विस्वास रहा ह्रदय  में
 दर्द छलकते, अधरों पर मुस्कान रही।।
 
 थके नही कदम  रुके नही चलते ही रहे.....
 
 सौ -सौ बार मरी ,जीने की चाहत में
 इंद्रधनुषी सपनों से अदावत कर बैठी 
 भटक रहा मन अमृत घट की तृष्णा में ....
 जख्मों का  ज़खीरा साथ लिए हूँ बैठी।।

 थके नही कदम रुके नही चलते ही रहे.. 

               उर्मिला सिंह
 

 
   
 

 



16 comments:

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना उर्मिला दीदी🙏🙏

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    1. हार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी ।

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    1. बहुत बहुत आभार आलोक जी।

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  3. आपका आभार अनिता जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए।

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  4. वाह!उर्मिला जी ,सुंदर सृजन ।

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  5. सौ -सौ बार मरी ,जीने की चाहत में
    इंद्रधनुषी सपनों से अदावत कर बैठी
    भटक रहा मन अमृत घट की तृष्णा में ....
    जख्मों का ज़खीरा साथ लिए हूँ बैठी।।

    थके नही कदम रुके नही चलते ही रहे..

    और हमेशा चलते ही रहेंगे...हमेशा की तरह लाजबाब....उर्मिला जी,सादर नमन आपको

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    1. ह्रदय से आभार कामनी जी,आप के शब्दो से प्रेणना और उत्साह मिलता है।

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  6. बहुत सुंदर गहन आस्था के साथ सुंदर सृजन दी ।
    सादर।

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    1. प्रिय कुसुम अंतर्मन से आभार आपका उत्साह वर्धन के लिए ।

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  7. वाह बेहद सुंदर

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    1. ह्रदय से शुक्रिया विनभारती जी।

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  8. विश्वासों के मणि मानिक से लबरेज रही
    जितने भी तीर चले रुधिर बहे ह्रदय में
    उतना ही अडिग विस्वास रहा ह्रदय में
    दर्द छलकते, अधरों पर मुस्कान रही।।
    समस्त नारी जाति की पीड़ा को शब्द दे दिए आपने उर्मि दीदी || बहुत बढिया और सुव्यवस्थित लिखा अपने हार्दिक शुभकामनाएं|

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    1. सनहिल धन्यवाद प्रिय बहन रेणू जी।

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  9. नारी मन की संवेदनाओं को बाखूबी लिखा है ...
    सुन्दर शब्द ...

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