Wednesday, 28 August 2019

अनकही व्यथा जब पन्नो पर बिखरती है....


कुछ धुवां उठा.... कुछ जख्म जले.....
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पन्नो पे बिखरते ही
मायूस पड़े ........
लफ्जों में मानो जान आगई
कुछ सासें धड़कने लगी
जीने का अरमान जगा
दिल की जलती चिंगारी में
कुछ धुवां उठा......
कुछ जख्म जले
राखों के ढेर पर
कुछ नज़्म लिखे......
कुछ हमने पढ़ा......
कुछ तुमने पढा....
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🌷उर्मिला सिंह

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