Wednesday, 7 August 2019

अभिलाषाएं मानव की कमजोरी होती है, मन ही मन उसे गढ़ने लगता है ख्वाबों की दुनियां में विचरण करते करते उसी में खुश होता है हकीकत से पूर्ण तय अनजान ,अनभिज्ञ....

अभिलाषाएं.......

अभिलाषाएं.......
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कितनी मीठी मीठी अभिलाषाएं
उर में चुपके चुपके घुमा करती
तितली से रंग बिरंगे पर फैलाए
फूलों के सौरभ को चूमा करती!

अभिलाषाएं जब पूर्ण यौवना होती
चाँदनी की बेचैनी उर में भर लेती
प्रेम के निर्झर में बहकी बहकी इतराती
आनन्द शिखर छूने को आतुर दिखती!

चन्द्रकिरण अप्सरियाँ बन जाती
मन अम्बर पर मोहक रास रचाती
मंत्रमुग्ध अभिलाषाएं स्वप्नों की दुनिया में
सुख दुख में सुलझी उलझी जाती!

कितनी मीठी मीठी होती अभिलाषाएं
सपनो के जीवन  की  सैर करा जाती......
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
             🌷उर्मिला सिंह




4 comments:

  1. बेहतरीन रचना दी

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  2. धन्यवाद प्रिय अभिलाषा ।

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  3. बेहद खूबसूरत रचना दी

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनुराधा ।

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