Tuesday, 26 January 2021

बन्दे मातरम

जब हम मना रहे गणतंत्र दिवस थे
अम्बर छू रहा तिरंगा था
हर भारतवासी का मस्तक
भारत के गौरव से ऊंचा था।

पर गिरी गाज इक ऐसी
शर्मिंदा दसों दिशाएं हुईं
जोअन्नदाता  कहते थे अपने को
राष्ट्र प्रेम किंचित मात्र नहीं था उनको।।


उपद्रवी किसानों ने ऐसा खेल खेला
तार तार हुई धरा लालकिला रोया
अपनों ने ही छाती पर वार किया
फूट फूट कर मां भारती का दिल रोया।।

पर चाल नहीं चलने पाएगी
मुठ्ठी भर देश के गद्दारों की
अखंड भारत अखंड  रहेगा
 राष्ट्रप्रेम सर्वोच्च है जीवन में
 बच्चा,बच्चा तुझपर कुर्बान रहेगा।।
          उर्मिला सिंह

              बन्दे मातरम











6 comments:

  1. सुन्दर समसामयिक रचना, सत्य की विवेचना करती हुई..

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    1. जिज्ञासा सिंह जी हार्दिक धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका डॉ रूपचंद्र शास्त्री जी।

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    2. सत्य को उजागर करती हुई सामयिक रचना ,बेहतरीन शुभप्रभात नमस्कार

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  3. सामयिक और सशक्त सृजन।

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