Sunday, 31 January 2021

गजल

जिन्दगी तुम मुझे यूं ख़्वाब दिखाया न करो
तिश्नगी है बहुत उजालों की आस दिलाया न करो।।

 करूं शिकवा भला कैसे शिकायत हो गई जिन्दगी
 मलहम भी कांटो की नोक से लगाया न करो।

 हिय की व्यथा मौन रखना लाज़मी होता है
 जिसे गुलशन समझा उसे सहरा बनाया न करो।

 उल्फ़ते -- सुकून कहते किसे अनजान रहा सदा
 बहारों में पतझड़ को कभी मुस्कुराने दिया न करो।

वक्त के दिए जख्मों का  क्या हिसाब दू जिन्दगी
तिनका तिनका सा अब यूं बिखराया न करो।

                     उर्मिला सिंह   





 

 

18 comments:

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    1. डॉ रूपचंद्र शास्त्री जी आपका बहुत बहुत आभार।

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  3. कामिनी जी ह्रदय से आभार आपका हमारी रचना को शामिल करने के लिए।

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  4. बहुत बढ़िया ग़ज़ल। आपको बधाई और शुभकामनायें।

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    1. धन्यवाद वीरेंद्र सिंह जी प्रोत्साहित करने के लिए।

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  5. बहुत अच्छी रचना...

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    1. संदीप कुमार जी आभार आपका।

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    1. शांतनु सान्याल जी हार्दिक धन्यवाद।

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  7. बहुत सुन्दर ग़ज़ल ।

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    1. मीना जी बहुत बहुत आभार।

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  8. बहुत सुंदर प्रस्तुति है दी भावनाओं से ओत-प्रोत।
    सुंदर/ उमर्दा ।
    सादर।

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  9. उम्दा पढ़ें सादर।

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    1. प्रिय कुसुम स्नेहिल धन्यवाद।

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  10. मलहम भी कांटों की नोक से लगाया न करो । बहुत सुंदर रचना उर्मिला जी ।

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  11. आभार आपका पम्मी जी हमारी रचनाको साझा
    करने के लिए।

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  12. हार्दिक धन्यवाद जितेंद्र माथुर जी।

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