Wednesday, 10 February 2021

गज़ल

नित नए षणयंत्र रचकर उसे रुलाना चाहता है
 वो ईमानदारी की राह चल मुस्कुराना चाहता है।।
  चमन की हर शाख पर घात लगाए बैठेहैं उल्लू 
वो हौसलों के तीर से चमन बचाना चाहता है।।

   तुम लाख डुबोना चाहो कश्ती उसकी
  तूफ़ानों का आदी तूफानों से खेलना जनताहै।।

 आँखों के छलकते आंसूं इंसानियत की जुंबा है 
 सतकर्म से इन्सानियत का संदेश देना चाहता है।

 छल बल  से सत्ता पाने की चाह में मशरूफ़ तुम
 वो शहीदों से मिली दौलत सहेजना चाहता है।।

माना कि झूठ के शोर में सत्य कराहता रहता
मानो न मानो सत्य देर सबेर जीतना जनता है।

हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और हुवा करते हैं
वो तुम्हारी चालबाजी को नाकाम करना जानता है।।

                  *******0******
                                       उर्मिलासिंह

 



 

9 comments:

  1. कविता तो अच्छी है उर्मिला जी लेकिन यह चाहने वाला और जानने वाला कौन है ? आपने ये बातें किसके लिए कही हैं ?

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज गुरुवार 11 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. दिव्या जी हमारी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

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  3. Replies
    1. आभार डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी।

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  4. सारगर्भित संदेश देती रचना..

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  5. जिज्ञासा जी।
    आपका आभार...💐💐

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  6. वाह सुंदर है दी पर स्पष्ट नहीं हो पा रहा यहां वो से किसका तात्पर्य है।
    सादर।

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  7. ये रचना पूर्णतः राजनीति पर है नाम न देकर संकेत के जरिये हमने कहने का प्रयास किया। बहुत बहुत आभार प्रिय कुसुम।

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