Friday, 5 February 2021

तेरी इक नज़र के सवाली हैं

जिंदगी तेरी हर बात निराली है 
मुट्ठी बन्द आती ,जाती हाथ खाली है।

ओरत का झुकना उसे ऊचां स्थान देता है
फलो ,फूलों से भरी झुकती वही डाली है।

जिधर देखो वहीं आदमी रंगबिरंगा है
हर चेहरा लगता यहां पर जाली है।

तरसता जो छप्पर और रोटी को
उसे क्या समझ चाँदनी है या रात काली है।

ऐ मालिक!तेरे गुलशन की हालत क्या हो रही
पतझड़ ही नज़र आता तेरी इक नज़र के सवाली है।

                  उर्मिला सिंह



9 comments:

  1. हृदय से निकली संवेदनशील अभिव्यक्ति । अभिनन्दन उर्मिला जी ।

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    1. आभार आपका जितेंद्र माथुर जी।

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  2. हार्दिक धन्यवाद डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री जी हमारी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए।

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  3. वाह !!!
    बहुत खूब !!!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद डॉ शरद सिंह जी।

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  4. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति

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    1. शुक्रिया कामनी सिन्हा जी।

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