Tuesday, 23 February 2021

चित्रकार.....

चाहे बनाओ चाहे मिटाओ तुम
तेरे हाथों की बनी तेरी तस्वीर हैं हम
तेरी रचना का नन्हा सा दीपक हैं हम 
चाहे जलाओ चाहे बुझाओ तुम।।

जाने  चित्र कितने बनाते हो तुम
पँचरंगो से सजा के भेजते हो तुम
वक्त की डोर का उसे कैदी बना .....
हाथों में श्वास डोर रखते हो तुम।।

चाहे बनाओ चाहे मिटाओ तुम
तेरे हाथों की बनी तेरी तस्वीर हैं हम।।

कर्म की भित्ति पे सुख दुख उकेरे
डाल देते हो अथाह सागर में तुम
नन्ही सी बूँद छूती मोह माया का किनारा
नये जग में विस्समोहित करते हो तुम।।

फँसाते उसे मोहमाया के बन्धन मे तुम
तेरे हांथो से बनी तेरी तस्वीर हैं हम।

प्रज्ञाचक्षु खुलने से पहले 
तृष्णा के मरुस्थल में घुमाते हो तुम
अनगिनत कामनाओं के शूल
ह्रदय की वादियों मे उगाते हो तुम

शूलों की सेज सजाओ या बचाओ तुम
तेरे हाथों से बनी तेरी तस्वीर हैं हम।।

जीवन की कश्ती मंझदार में पड़ी
तूफ़ानी लहरें राह रोके खड़ीं.....
ऐ चित्रकार! तुमको पुकारे तुम्हारी कृती
अब तो आगई बिदाई कीआखिरी घड़ी।।

चाहे उबारो चाहे डुबाओ तुम
तेरे हांथो की बनी तेरी तस्वीर हैं हम।।
      💐💐💐💐💐💐
         उर्मिला सिंह






















16 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2050...क्योंकि वह अपनी प्रजा को खा जाता है... ) पर गुरुवार 25 फ़रवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक दग्न्यवाद रविन्द्र जी आपका,हमारी रचना को साझा करने के लिए।

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  2. सुन्दर प्रस्तुति.

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    1. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी।

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    2. धन्यवाद डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी आपका।

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  4. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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    1. हार्दिक धन्यवाद आलोक सिंह जी।

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  5. हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति, सादर नमन उर्मिला जी

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  6. बहुत ही खूबसूरत सृजन !
    हमारे ब्लॉग पर भी आइए आप का हार्दिक स्वागत है🙏🙏🙏🙏

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  7. बहुत सुन्दर सृजन । सादर नमन उर्मिला जी।

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  8. बहुत सुंदर रचना दीदी

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  9. जीवन की कश्ती मंझदार में पड़ी
    तूफ़ानी लहरें राह रोके खड़ीं.....
    ऐ चित्रकार! तुमको पुकारे तुम्हारी कृती
    अब तो आगई बिदाई कीआखिरी घड़ी।।
    सरल ,सहज उद्बोधन सृष्टि रचियता के नाम | बहुत सधी रचना प्रिय उर्मि फीफी | बहुत सुंदर लिख रहीं हैं आप | सादर

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