Sunday, 16 May 2021

ऐसी कुछ नेकी करो.....

ऐसी कुछ  नेकी करो,जान न पाये कोय,
साक्षी दीनदयालु हों,घट- घट वासी जोय।।

मीठी वाणी कष्ट  हरे,कड़वी तीर समान।
काँव-काँव कौवा करे, करे न  कोई मान।।

करुणा ह्रदय राखि के,करियो सगरे काज,
 अन्तर्यामी देख रहा,वही रखेंगा लाज।।

काम क्रोध मद मोह में,फँसा हुवा संसार,
इनसे मुक्ति कैसे मिले,दिखे न  कछु आसार।।

गृहस्थ धर्म  कर्म है,करो कर्म दिन रात,
सुमिरन मन करता रहे,इतनी मानो बात।।
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                             उर्मिला सिंह

         

5 comments:

  1. वाह!उर्मिला जी ,बहुत खूब!

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  2. हार्दिक धन्यवाद शुभा जी।

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  3. बहुत अच्छी कविता है यह आपकी उर्मिला जी। सरल भी, सुंदर भी।

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  4. हार्दिक धन्यवाद मान्यवर।

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