Wednesday, 23 June 2021

गजल.....

फ़िर अंधेरे आने न पाए ,रोशनी सम्भल के रहना
चल रहें चालें अंधेरों के मदारी,सम्हल के रहना।।

ये सच है ख़ामोशी की शाख पर ,कडुवे फल नही लगते,
अति ख़ामोशी कमजोरी की निशानी है सम्हल के रहना।।

संघर्षों के बहुतेरे ताप झेलें हैं उजालों की आस में ग्रहण लग न जाये प्रयासों में  सम्हल के रहना।।

भगत सिंह,आजाद ,बोस की कुर्बानियां याद रहे
गिद्ध सी नजरें गडाएँ हैं ,जो देश पर उनसे सम्हल के रहना।

हौसलों की मशाल बुझने न पाये ,पथिक तुम्हारी 
ये कर्म युद्ध की अग्नि है जरा सम्हल के रहना।।

वाणियों से तीर बरसा,बालुवों के महल बनाते ये
फिक्र नही करते जो जलते अंगारों पर चलतेहैं सम्हल के रहना।।

                  उर्मिला सिंह





 


9 comments:

  1. भगत सिंह,आजाद ,बोस की कुर्बानियां याद रहे
    गिद्ध सी नजरें गडाएँ हैं ,जो देश पर उनसे सम्हल के रहना।
    बहुत सटीक...
    वाह!!!

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  2. अन्तर्मन से धन्यवाद आपको हमारे भाव को समझने के लिए।

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  3. हार्दिक धन्यवाद आलोक जी।

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  4. बहुत सुंदर सृजन दी
    हौसलों की मशाल बुझने न पाये ,पथिक तुम्हारी
    ये कर्म युद्ध की अग्नि है जरा सम्हल के रहना।।
    चेतावनी देती पंक्तियाँ।

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  5. धन्यवाद प्रिय कुसुम।

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