Sunday, 17 October 2021

भाओं का गुलदस्ता....

मन के भाव...पन्ने लेखनी के
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बिगड़ रही रीति जगत की
खोया सम्मान ढूढ रही नारी 
अन्तर्मन है प्रभु  की नगरी 
 हाथों में उसके सबकी डोरी।।
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 राजनीति अब चौसर बनी 
  नेता सारे बने खिलाड़ी
 चुनाव युद्ध का बिगुल बजा
 छल प्रपंच घोड़ाऔरसिपाही
 शकुनी दुर्योधन,बने खिलाड़ी
 ऊपर बैठे मुस्काते  गिरधारी।।
           ****0****
 उसूल याद नही जिनको 
 कहते हैं अपने को गांधी
 कैसे नेता माने देश उनको 
 बातें करते जो पाकिस्तानी।।
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हत्याओं के दौर चल पड़ा
हर दल, दल दल में पड़ा
मानवता का होरहा शोषण
होगा कैसे गरीबों का पोषण।
           ****0****
हर सांस देश के लिए जिए
समर्पित सांसे अपनी करगए 
चाहत नही नाम अरु कुर्सी  की 
राष्ट्रभक्त थे वो अमर होगए।।

      उर्मिला सिंह

15 comments:

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    1. हार्दिक आभार आपका सुशील कुमार जोसी जी।

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  2. बहुत सुंदर सृजन ।

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    1. अन्तर्मन से धन्यवाद मीना जी।

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  3. सटीक सुंदर यथार्थपूर्ण रचना ।

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    1. जिज्ञासा जी धन्यवाद आपका।

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  4. राजनीति अब चौसर बनी
    नेता सारे बने खिलाड़ी
    चुनाव युद्ध का बिगुल बजा
    छल प्रपंच घोड़ाऔरसिपाही
    शकुनी दुर्योधन,बने खिलाड़ी
    ऊपर बैठे मुस्काते गिरधारी।।
    बहुत ही उम्दा

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  5. यथार्थवादी लेखन

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  6. उत्तम सृजन आ0

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    1. धन्यवाद अनिता सुधीर जी।

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  7. समयानुकूल सुंदर रचना!--ब्रजेंद्रनाथ

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  8. हार्दिक आभार कामनी जी हमारी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए।

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