Sunday, 12 April 2020

ख्वाब देखता रहा चांद तारों का........

पांव ज़मीं पर टिका नहीं, ख्वाब देखता रहा चांद तारों का ता- उम्र इन्सान... 
ज़ज्बा,त्याग, कुर्बानी  सीखा नहीं,इंसानियत का खून करता रहा ता -उम्र इन्सान! 

आँखों में नफ़रत का सागर लिए, धर्म की दुहाई देता रहा  इन्सान...... 
मिट सकी न तृष्णा मन की, आवारा बादलों सा घूमता रहा ता-उम्र इन्सान! 

है फिक्र किसी के जख्मों की  कौन करता यहाँ ..... 
जिन्दा रखने के लिए नमकदान लिए, मौका ढूंढता रहा 
ता - उम्र इन्सान! 

दिख रही बेज़ार सी, हर नज़र वक्त के हाथों यहां.... 
अभिमान में डूबा, दुवा मांगता रहा ता - उम्र इन्सान! 

कद बढ़ाने का आशिक रहा, दिन रात आदमी ... 
पर दिल के दरवाजे सँकरा करता रहा, ता - उम्र इन्सान! 

मुफ़लिसी मे जीता रहा, अच्छे दिनों की आस में आदमी... 
लाश अपनी कन्धों पर उठाए चलता रहा, ता-उम्र इन्सान!! 
                      *****0*****0*****
                                                     उर्मिला सिंह 















9 comments:

  1. आज के इंसानों की आंख खोलती हुई बेबाक रचना जो विज्ञान उचाईयों क़ी पोल खोलती हुई....
    अति सुंदर सामयिक रचना ....💐💐

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  2. हार्दिक धन्य वाद रविन्द्र सिंह यादव जी. चर्चा मंच में शामिल करने के लिए

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  3. बहुत सुंदर रचना

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. कद बढ़ाने का आशिक रहा, दिन रात आदमी ...
    पर दिल के दरवाजे सँकरा करता रहा, ता - उम्र इन्सान
    वाह!!!!
    क्या बात...
    बहुत लाजवाब।

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    1. हार्दिक धन्य वाद सुधा जी

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  6. बहुत सुंदर और सार्थक सृजन दी।

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    1. हार्दिक धन्य वाद प्रिय कुसुम

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