Friday, 24 April 2020

औरत बदल न पाई खुद को......

कहकहे लगाती दुनिया के भीड़ में चल रहे सभी!
एक ठहराव आगया जिंदगी में जिन्दगी के साथ!!

दिल न जाने क्यों कभी मोम बन पिघलने लगता!
अश्क बन आँखों से होकर बहता बेबसी के साथ!!

वक्त के साथ बदलता गया इंसान और उसके तेवर!
औरत बदल न पाई बहती रही नदी सी बेकसी के साथ!!

दर्द से रिश्ता निभाना आ गया तुझसे ऐ जिन्दगी!
लबों पे गम छलकता है सलीके से हँसी के साथ!!

गुल  कर  दिया  ख़्वाबों  के चिरागों को हमने !
शब के हाथों खुद को सौप दिया खुशी के साथ!!

नम आँखो का दर्द अश्क बन ढलता नही है!
अश्कों को पीने का हुनर आगया बेबसी के साथ!!
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        .                              उर्मिला सिंह 

10 comments:

  1. अश्कों को पीने का हुनर आ गया बेबेसी के साथ ।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  2. रविन्द्र सिंह यादव जी हार्दिक धन्य वाद हमारी रचना को शामिल करने के लिए

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  3. मान्यवर आभार आप का!

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  4. कहकहे लगाती दुनिया के भीड़ में चल रहे सभी!
    एक ठहराव आगया जिंदगी में जिन्दगी के साथ!!

    दिल न जाने क्यों कभी मोम बन पिघलने लगता!
    अश्क बन आँखों से होकर बहता बेबसी के साथ!!..
    वाह !बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीया दीदी 👌

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  5. हार्दिक धन्य वाद प्रिय अनिता जी

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  6. वक्त के साथ बदलता गया इंसान और उसके तेवर!
    औरत बदल न पाई बहती रही नदी सी बेकसी के साथ!!

    दर्द से रिश्ता निभाना आ गया तुझसे ऐ जिन्दगी!
    लबों पे गम छलकता है सलीके से हँसी के साथ!!
    वाह!!!
    क्या बात....
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

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  7. हार्दिक धन्य वाद सुधा जी

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  8. दर्द से रिश्ता निभाना आ गया तुझसे ऐ जिन्दगी!
    लबों पे गम छलकता है सलीके से हँसी के साथ!!
    बहुत खूब !! अत्यन्त सुन्दर और हृदयस्पर्शी सृजन ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद मीना जी।

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