Saturday, 4 April 2020

पिता को समर्पित रचना..

तेरी बन्द पलकों,.... के पीछे
देखा करती थी.....
पलास के फूलों जैसे 
बिखरे हुए अंगारे 

 खेलते रहे निरंतर....
 उनअगारों से तुम...
 राख में परिवर्तित....
 हो गये एक दिन !
         
  पल-पल सुलगना......
  हर वक़्त तुम्हारा.....
  बहुत करीब से ,
  देखा था हमने........... !
  
  पर न दिया आपने ......,
  बुझाने  का मौका  ...
  कभी.....मुझे....!
 
 आज बिखरा है...
  हृदय में .......मेरे
   राखों का अम्बार....
           तेरा.....!
   
   पर वो चिंगारी --
   नजर आती नही......,
   जो तुम्हे .......,
   राख के ढेर ....
   में परिवर्तित कर गई..... !
      === === ===
  
  दर्द छुपाये हँसते  रहे....
  थे  मिसाल  जिन्दादिली के तुम !
   अपने पास बिठा के मुझको ...
   जाने मुझमें क्या देखा  करते थे  !
   विचारों में रखते थे....
   सागर सी गहराई ...
   मर्यादा संस्कारों का....
    तुम ...सदा ही...
    पाठ पढ़ाया करते थे ! 
  
   अम्बर पर तारे बन........
   चमका करते हो !
    किससे पूछू दर्द तुम्हारा....
    तुम जो मन ही मन झेला करते थे!!
             **********
                                   #उर्मिल
  

 
  
   
                        
                          

17 comments:

  1. हार्दिक धन्य वाद रविन्द्र सिंह यादव जी हमारी रचना को "चर्चा अंक में शामिल करने के लिए

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  2. सुन्दर रचना

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  3. पिता-पुत्री का असीम प्यार से भरी सुंदर रचना.

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    1. हार्दिक धन्य वाद राकेश कुमार जी

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  4. दर्द छुपाये हँसते रहे....
    थे मिसाल जिन्दादिली के तुम !
    अपने पास बिठा के मुझको ...
    जाने मुझमें क्या देखा करते थे

    ,बहुत ही सुंदर और मार्मिक सृजन ,सादर नमन

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  5. हार्दिक धन्य वाद कामिनी जी

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  6. पिता को समर्पित भाव सदैव उत्कृष्ट होते हैं।
    बहुत सुंदर सृजन दी।
    सादर।

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    1. प्रिय श्वेता आभार आपका

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  7. दर्द छुपाये हँसते रहे....
    थे मिसाल जिन्दादिली के तुम !
    अपने पास बिठा के मुझको ...
    जाने मुझमें क्या देखा करते थे !
    विचारों में रखते थे....
    सागर सी गहराई ...
    मर्यादा संस्कारों का....
    तुम ...सदा ही...
    पाठ पढ़ाया करते थे !... बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीया दीदी. पिता को समर्पित बहुत ही सुंदर भाव.
    सादर

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    1. हार्दिक धन्य वाद प्रिय बहन अनिता जी l

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  8. बहुत ही सुंदर भाव प्रकट किए हैं

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  9. भावुक कर देने वाली रचना
    बहुत सुंदर

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  10. उफ़्फ़! नि :शब्द!!!!

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    1. हार्दिक धन्य वाद विश्वमोहन जी, सत्य पर आधारित रचना है शायद इसीलिए आप सभी को पसन्द आई l

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