Friday, 1 May 2020

मजदूर

मैं एक मजदूर हूँ
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परिश्रम का पसीना बहाता
उसीसे दो वक्त की 
रोटी का जुगाड़ करता
माँ भारती का लाडला पुत्र 
     एक मजदूर हूँ!!

 बारिष ठंढ और धूप में 
 तपकर सोना होगया हूं 
 फिर भी बड़े लोगों का--
 ज़ुल्म सहता ,किस्मत का मारा
       एक मजदूर हूँ!!
       
बड़े -बड़े महलों में रहने वालों
हमारी हस्ती को भूलने वालों
हमारे पसीनों की बूदें नीव है -
तुम्हारे आलीशान महलों की।
फिर भी अपमानित किया जाता ,क्यों कि  
            एक मजदूर हूँ!!
        
पुलो सड़कों पर दौडतीं रेलगाड़ियां
मजदूरों के परिश्रम की हैं निशानियां
बेबसी,मज़बूरियों में उलझी रहती जिंदगानी 
परिश्रम का नेवाला खाता  खिलाता....

              एक मजदूर हूँ!!
             
                     उर्मिला सिंह,






 

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