Saturday, 28 November 2020

ग़ज़ल

खोल दी आज खिड़कियां रश्मियों ने आवाज दी है
हो गया सबेरा परिंदों की टोलियों ने आवाज दी है

मिट पायी नही कभी जिन्दगी की ये तल्खियाँ
आज किसी  की भोली मुस्कुराहटों ने आवाज दी है

हर कदम पर तिजारत से भरी जिंदगी है
न जाने किधर से आज इंसानियत ने आवाज दी है

 पंखुड़ियों ने नमी पलकों की ,आगोश में समेटा है
  आज  हरसिंगार के फूलों ने आवाज दी है

 लगाकर एतबार के पौधे ता उम्र हारते  रहे
 आज विश्वाशों ने एक बार फिर आवाज दी है

रिश्ते नाते सभी का पैमाना आज ज़र ही रह गया है
आज अहसासों के रिस्तो ने फिर आवाज दी है

रूह तड़पती रही घुटन होती रही कोई सुर तो मिले
आज दर्दे दिल की दवा सुर के तारों ने आवाज दी है !
                     ******0******
                 उर्मिला सिंह







13 comments:

  1. रिश्ते नाते सभी का पैमाना आज ज़र ही रह गया है
    आज अहसासों के रिस्तो ने फिर आवाज दी है

    रूह तड़पती रही घुटन होती रही कोई सुर तो मिले
    आज दर्दे दिल की दवा सुर के तारों ने आवाज दी है !
    सुंदर सृजन

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    1. आभार आपका सधु चन्द्र जी।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 29 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. ह्र्दयतल से आभार यशोदा जी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए।

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  3. हार्दिक धन्यवाद अनिता सैनी जी आपका हमारी रचना को चर्चा मंच पर शामिल करने के लिए।

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  4. आभार मान्यवर आपका ।

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    1. धन्यवाद शांतनु सान्याल जी।

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  6. बहुत सुंदर सृजन दी, अहसासों से भरी रचना।

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    1. स्नेहिल धन्यवाद प्रिय कुसुम।

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  7. बेहतरीन ... काश ये आवाजें सब सुन लेते ।

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