Tuesday, 3 November 2020

दुनिया का चलन....

सीखने लगे सबक
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दुनिया का चलन 
लगे सीखने सबक
बहुत नादान थे हम 
समझ न पाए सबब।

छल प्रपंच से भरी
है ये दुनिया सारी
देखी जो बेहाली
नम हुईं आंखे हमारी।

'पैरों तले खिसकने
लगी जमीन'
हम सम्भलने लगे 
रफ्ता-रफ्ता बढ़ने लगे।

थक कर बैठे न हम
पांव जख्मी हुवे
अश्क ढुरते रहे
मलहम को तरसते हम।

दुनिया की हकीकत 
रिश्तों की गठरी खुली
उघड़ी तुरपाई की मरम्मत हुई
 जिन्दगी आहिस्ता आहिस्ता
 कांटों में  खिलने लगी।।

      उर्मिला सिंह

7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 04 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपको हमारी रचना को साझा करने के लिए।

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  2. दुनिया की हकीकत
    रिश्तों की गठरी खुली
    उघड़ी तुरपाई की मरम्मत हुई
    जिन्दगी आहिस्ता आहिस्ता
    कांटों में खिलने लगी

    सुन्दर अभवियक्ति। यही तो ज़िन्दगी है।

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  3. विकास नैनवाल जी हार्दिक धन्यवाद आपको।

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  4. दुनिया की हकीकत
    रिश्तों की गठरी खुली
    उघड़ी तुरपाई की मरम्मत हुई
    जिन्दगी आहिस्ता आहिस्ता
    कांटों में खिलने लगी।।

    बहुत अच्छी कविता
    साधुवाद 💐

    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

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  5. छल प्रपंच से भरी
    है ये दुनिया सारी
    देखी जो बेहाली
    नम हुईं आंखे हमारी।...मन को छूती अभिव्यक्ति आदरणीया दी।

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